गुरुवार, 13 दिसंबर 2012

श्रद्धासुमन करें अर्पित !!














चिर निद्रा में
संगीत का सितारा
हुआ है लीन !
....
मौन सितार
स्‍वर छेड़े कौन
किससे कहे !
...
जब बजेगा
तारसप्‍तक वो
याद आएगा !
...
भीगे नयन
श्रद्धासुमन करें
अर्पित बस !
...
दिल की बात
जब हाइकू कहे
गहराई से !
...
मान उनका
शब्‍द रखते ये
कहते हुये !

...

शनिवार, 24 नवंबर 2012

हारकर भी ... !!!

प्रेम को तुम
जिंदगी बनाना तो
सम्‍मान से !
.....
प्रेम जब भी
खामोश होता है तो
जता जाता है !
....
अपना दर्द
छुपाया तो जाना ये
कैसा होता है !
...
हारकर भी
जो नहीं हारता है
वही विजेता !
...
जीत की भाषा
सिर्फ अहसास से
समझी जाती !
...

शुक्रवार, 9 नवंबर 2012

रश्मि प्रभा जी की पुस्‍तकें ... इंफीबीम पर !!!

आप सब इनकी लेखनी से बखूबी परीचित हैं ... जी हां जिक्र है आज
आदरणीय रश्मि प्रभा जी की पुस्‍तकों का जो उपलब्‍ध हैं एक साथ ... 40 प्रतिशत की विशेष छूट के साथ
तो आइये मिलते हैं उनकी पुस्‍तकों से

(1) शब्‍दों का रिश्‍ता ...







शब्दों के बीच आम इंसान बहुत घबराता है!
शब्दों का जोड़-घटाव उनके सर के ऊपर से गुजरता है
वे भला कैसे जानेंगे उनको-
जिनके सर से होकर आँधियाँ गुज़रती हैं....

(2) अनुत्तरित ....





अनुत्तरित सवाल 
परिक्रमा करते हैं रूह की तरह
चाहते हैं उत्तर का तर्पण 
पर जहाँ अपनी सोच से उठते है सवाल 
होते हैं अक्सर अनुत्तरित
(3) महाभिनिष्‍क्रमण से निर्वाण तक ...



निर्वाण सत्य है या असत्य 

जो भी है .... इसकी चाह है 
चाह को पाने के लिए होता है महाभिनिष्क्रमण ...
महाभिनिष्क्रमण !
घर त्याग 
या मन का त्याग ?
(4) खुद की तलाश ...
यह तलाश क्‍या है,  क्‍यूँ है
और इसकी अवधि क्‍या है !
क्‍या इसका आरंभ सृष्टि के आरंभ से है 
या सिर्फ यह वर्तमान है
या आगत के स्रोत इससे जुड़े हैं ?

आप इन सबको एक साथ पा सकते हैं इंफीबीम पर तो फिर चलें !!!
Rashmi Prabha Combo
या फिर डॉयल करें .... 079- 40260260

मंगलवार, 30 अक्तूबर 2012

अपनी ही मैं में ....

दर्द आज़ अपनी ही पीड़ा को
पीना चाहता है आँसुओं की शक्‍ल में
सिसकियों का रूदन
कब चिन्हित हुआ रूख़सार पर
वो हतप्रभ है औ भयाक्रान्‍त भी
इस आक्रोश पर
सर्जक का आवेग बहा ले जाता है
अपनी ही मैं में
बिना किसी की कोई बात सुने
....
ज़बां का खामोश होना
सारे प्रयासों को विफ़ल कर हर बार
दाग देता अपने ही जि़स्‍म में
अनेको शब्‍द बाण
आहत हो मन खुद की शैय्या तैयार कर
विचलित सा अंत की प्रतीक्षा में
अनंत पलों का संहार कर
विषादमय हो
बस प्रतीक्षा करता है अंत की
अनंत पलों तक

गुरुवार, 4 अक्तूबर 2012

एक बांध सब्र का ...

दर्द की भाषा कभी पढ़ी तो नहीं मैने
बस सही है हर बार
एक नये रंग में
उसी से यह जाना है
ये दर्द जब भी होता है
किसी अपने को तो
कई बार हमारी आंखों से भी
बह निकलता है
इसकी पीड़ा से जब व्‍याकुल होता है
हमारा ही कोई स्‍नेही तो हम भी
दर्द की अनुभूति करते हैं
मन ही मन उसका पैमाना तय करते हैं
...
लेकिन यह भी सच है
अपने हिस्‍से का दर्द हमेशा
खुद को ही सहना होता है
तभी तो हर मन में होता है
एक बांध सब्र का
जिसमें होते हैं कुछ हौसले
कुछ उम्‍मीदें कुछ समझौते
जिन्‍हें मजबूती देता है विश्‍वास
जिससे बुलंद होता है
हर एक अहसास
...

शुक्रवार, 14 सितंबर 2012

जिंदगी की तरह ...

किताबों में सिर्फ़ शब्‍द ही नहीं होते
उन शब्‍दों के अर्थ जिन्‍दगी से होते हैं
कुछ किताबें होती हैं बिल्‍कुल
जिन्‍दगी की तरह
कभी सुलझी कभी उलझी
कभी भावनाओं में ब‍हती हुई
किताबों सा हमनशीं कोई नहीं होता
कभी शिका़यत नहीं कभी बेरूखी नहीं
जब तुमने चाहा वो तुम्‍हारे
साथ हो लेती हैं
बिना थके वर्क़ दर वर्क़
खुलती जाती हैं
बिना किसी झुंझलाहट के !!!
...

शुक्रवार, 31 अगस्त 2012

उसे पता था .. !!!

जड़ों को विस्‍तार देती
धरती ने
कभी भी पेड़ को
भार नहीं माना
उसका विशालता से
कभी नहीं सहमी
उसे पता था
उसका साया आकाश है ...
..........................................

प्रेम
इस ढाई अक्षर ने
कितनों की जिन्‍दगी के
मायने बदल दिये
जिनके पास यह होता है
उनके पास एक
विस्‍तृत आकाश होता है
जिनके पास से
यह चला जाता है
उनके पास आंसुओं का
पूरा सैलाब होता है
....





बुधवार, 29 अगस्त 2012

मन ...

मन .. हमारे शरीर का एक ऐसा हिस्‍सा जिसे हम में से किसी ने नहीं देखा लेकिन हमारा शरीर पूरी तरह से इसके अधीन रहता है ... सारे क्रिया-कलापों का कर्ता-धर्ता यही है ... चंचल चपल हमेशा अपनी ही करने वाला अधीर सा यह मन किसी नटखट बालक की भांति प्रतीत होता है ... इसका बचपना कभी नहीं जाता पल में उदास तो पल में खुश कभी लम्‍बी उड़ान भरता और जा पहुँचता उनके पास जो सात समंदर पार हैं या मीलों की दूरियाँ हैं जिनके बीच कभी सबके बीच में रहकर भी तन्‍हा हो जाता बगल में कौन बैठा है ? उससे भी अंजान इसकी माया निराली है तभी तो किसी ने कहा है न माला फेरत जुग गया गया न मन का फेर ...आप लाख कोशिश कर लो पूजा पाठ की जप तप की यदि मन नहीं चाहेगा तो कुछ भी करना संभव नहीं या फिर जो भी किया सिर्फ़ दिखावे के लिए ही किया ...
इसके फ़ेर में आने से कोई बचा भी तो नहीं क्‍योंकि इसे दिखावा करना भी खूब आता है ... यदि यह नहीं चाहेगा तो आप किसी को अपना सच चाहकर भी नहीं बता सकते ... तकलीफ़ सहते रहेंगे भीतर ही भीतर लाख दु:ख सतायेगा ... पर ये किसी से साझा करने ही नहीं देगा, कभी - कभी तो मुझे यह मन खिलाड़ी लगता है खेलता रहता है रोज़ नये - नये खेल और हमें खबर तब होती है जब परिणाम आता है कई बार कहता है धीरे से tit for tat ...
तभी तो कहते हैं हम सहज़ ही मन की बातें मन ही जाने ... इसकी एक बात और भी ये चंचल ही नहीं हठी भी होता है इसने जो ठान लिया उसे पूरा करके ही रहता है ..फिर चाहे कितनी भी अड़चनें आये ये पूर्णत: कृत संकल्पित हो जुट जाता है पूरे जोश के साथ ... . जैसा आज मुझे लगा इन विचारों का आपसे साझा करने का ... मैने तो कर लिया अब आपकी बारी है ... कुछ विचार आपके भी मन के बारे में ...

बुधवार, 22 अगस्त 2012

स्‍नेह की छांव में ...

आज पापा की तिथि मन रात से ही उन्‍हें अपने आस-पास महसूस कर रहा है ...
मेरी हर बात पर स्‍नेह से हां कहते और मुस्‍करा देते ...
बस उनकी वही चिर-परिचित मुस्‍कान है और पलकों पे नमीं ...

कुछ मेले बचपन के
ख्‍वाबों में अब भी चले आते हैं,
कुछ पलों के लिए
आकर पलकों पे ठहर जाते हैं
दिल को बेचैन हैं करते वो झूले जब
हम छोड़ के उंगली बाबा की
गुम हो जाते हैं
रोते हैं मिलने की फ़रियाद भी करते हैं
अश्‍कों के बीच उनको याद भी करते हैं
महसूस करते हैं उन्‍हें हर पल
सिर्फ़ महसूस ही कर सकते हैं उन पलों को ...
हर एक बात को हर एक याद को
साथ कर लेते हैं
और चल पड़ते हैं स्‍नेह की छांव में
धीमे कदमों से आहिस्‍ता - आहिस्‍ता ...

गुरुवार, 9 अगस्त 2012

ठहर जाओ दम भर के लिए :)

मैंने कई दफ़ा चाहा
उतार दूँ कर्ज तुम्‍हारी दुआओं का
इन दुआओं ने मुझे कई बार
मौत की आगोश में जाने से बचाया है
जिन्‍दगी को यह कर्ज भले ही मंजूर हो
पर सच कहूँ तो मेरी आत्‍मा
इस कर्ज से मुक्ति पाना चाहती है
...
तमन्‍नाओं का  यूँ तो
कोई लेखा-जोखा नहीं रहता किसी के पास
पर जब तमन्‍ना जिन्‍दगी को जीने की होती है तो
बस यही ख्‍याल आता है
इस नश्‍वर जिन्‍दगी से इतना प्रेम किसलिए
इसका अंत एक न एक दिन तो होना निश्चित है
फिर ये भय कैसा
कभी सड़क पर चलते हुए
किसी अज्ञात वाहन की अनियंत्रित गति से
बाल-बाल बच जाने पर
ह्रदय की धड़कनों की रफ़्तार कई गुना तेज हो जाती
जिसे नियंत्रित करने के लिए
जहाँ हो जैसे हो बस ठहर जाओ दम भर के लिए :)
....

मंगलवार, 31 जुलाई 2012

कुछ की फितरत होती है ....

कुछ असभ्‍य चेहरों ने
लगा लिया है नक़ाब सभ्‍यता का
हर चेहरे पर है चेहरा
कई रूपों में मिलता है यह नक़ाब
कुछ की कीमत चुकानी होती है
कुछ को छीन लिया जाता है
कुछ विरासत में पा लेते हैं
...
क़ायदा पढ़ने की चीज़ नहीं होती
सिखाने की भी नहीं होती
क़ायदा जब मन कहता है तभी
बस करने को जी चाहता है किसी का
...
बदलना यूँ तो  आसान नहीं होता,
कुछ बदलाव हालात करा देते हैं
कुछ करते हैं समझौता खुद से
पर कुछ की फितरत होती है
बदल जाने की ...
...





सोमवार, 16 जुलाई 2012

कुछ बूंदे उम्‍मीद की !!!

कुछ बूंदे उम्‍मीद की
बरसी हैं बादलों से झगड़कर
आईं हैं धरती पर प्‍यास बुझाने उसकी
मिलकर माटी से हो गई हैं माटी
सोंधेपन की खुश्‍बु जब
लिपट गई गई झूम के बयार से
सावन ने हथेली में लिया प्‍यार से
उम्‍मीद की कुछ बूंदों को
मेंहदी में मिलाकर
रचा लिया जो हथेलियों को
...
कुछ बूंदे उम्‍मीद की
बरसी हैं
किसान की आंखों से
बीज़ बो आया है धरती में
अभिषेक उसका ये सफल होगा
आने वाला कल शीतल होगा
...

बुधवार, 11 जुलाई 2012

चांद की लोरी से .....

दर्द की आंखों में सूनापन देखकर
अब जी घबराता नहीं
बस यह लगता था कि कहीं ये रो न दे
मेरी मायूसियों का चर्चा रहा
सारा दिन उसकी पलकों पे
कोई ख्‍वाब बह गया गया तो
कैसे संभाल पाएगी वह
....
कातिलों का शहर है  नींद
जाने कितने ही ख्‍वाबों का कत्‍ल होता है
हर रात यहां
गवाही देने के लिए कोई नहीं आता
तारे सो जाते हैं चांद की लोरी से
सूरज जब तक पहरे पे होता है
कोई खामोशी के लिहाफ़ से
बाहर झांकता नहीं ...

मंगलवार, 19 जून 2012

वर्ना लोग क्‍या कहेंगे ???

तुम संवेदनशील हो
बहुत अच्‍छा है
हर कोई अपना मतलब सिद्ध
कर लेता है गाहे-बग़ाहे
तुम्‍हारी संवेदनाओं की छतरी में
बारिश से बचने के लिए
और चिलचिलाती धूप में
थोड़ी सी छांव के लिए
तुम आधे भीगने का आनंद लेकर
उसे पूरा सूखा रखते हो
जलती धूप में अपनी बांह की
कोहनी तक बहते पसीने में भी
उसे छांव के नीचे रहने का सुकून देते हो
...
लेकिन जब तुम्‍हारी बारी आती है तो
उसी सामने वाले को
चक्‍कर आने लगते हैं
गिरगिट की तरह रंग बदलकर
छतरी बंद कर देता है
और लाठी की तरह टेक बनाकर
तुम्‍हारे कांधे का सहारा लेकर
चलने लगता है
....
नहीं समझे !!! तुम्‍हें समझना आता ही नहीं
यही तो समस्‍या की जड़ है
तुम संवदेनशील लोगों की
जिन्‍हें अच्‍छाई का दाना खिलाया गया
संस्‍कारों का पानी पीकर तुम बड़े हुए
फिर भला कैसे तुम
संवेदनशील नहीं होते
तुम्‍हारा मन क्‍यूँ नहीं पसीज़ता
किसी को मुश्किल में देखकर
...
लेकिन सब बदल रहे हैं
तुम कब बदलोगे ?
थोड़ा तो ज़माने के साथ चलो
वर्ना लोग क्‍या कहेंगे ???

मंगलवार, 5 जून 2012

कितना फर्क होता है न ...

तुम्‍हारी खामोशी के बीच
सन्‍नाटा घुटनों के बल
चलते हुए जाने कब
अपने पैरों पे खड़ा हो गया
देख रहा था
आपनी पारखी नज़रों से
तुम्‍हारी मायूसी को
कभी तुम्‍हारी
खिलखिलाती हँसी ने
सन्‍नाटे को भी
मुस्‍कराहटों के संग साझा किया था 
....
सन्‍नाटे ने पहली बार
महसूस किया था
हँसी की मधुरता को
तभी तो आज फिर वह विचलित था
कौन है वो ऐसा
जिसने तुम्‍हें कैद कर लिया है
उदास चेहरे के पीछे
उसने देखा दीवारों को 
जिनसे रौनक गायब थी
बिल्‍कुल तुम्‍हारे चेहरे की तरह
कितना फर्क होता है न
खिलखिलाती हँसी और फीकी हँसी में
एक बोझिल सी
एक अल्‍हड़ नदी सी ...

सोमवार, 14 मई 2012

कुछ समझाइशों के बादल ...!!!















कुछ विरोधी स्‍वर
मन में अपनी बातों की
पकड़ मजबूत रखते हैं
कोई कितना भी 
सच कहे
उसे यह ना मानने की 
जब शपथ ले लेते हैं
तो फिर 
नहीं मानते हैं ... 

कुछ समझाइशों के बादल
आंखों में तैरते जरूर हैं
लेकिन उन्‍हें 
बरसने के लिए
वक्‍त पर ही निर्भर
कर दिया जाता है ... 

एक शोर है आस-पास 
पर गुमनाम सा वह
कौन है जिसको
पुकार रहा है यह शोर  ...

उधार की जिन्‍दगी से अच्‍छा है
निज़ता का बोध
एक मील का पत्‍थर

शनिवार, 21 अप्रैल 2012

यह मन भी ...





















किस किस से पूछोगे
किस किस को समझोगे
यूँ तो शीर्ष पर
कोई न कोई होता है
और जिन्‍दगी में उसका ही
अनुसरण करते हुए
आगे बढ़ना होता है ...
मानव तन में आत्‍मा का
ओहदा सबसे परम विश्‍वासी
माना जाता है
पर मन ने अपना कब्‍जा वहां भी
साधिकार जमा रखा है
आत्‍मा कुछ कहे तो
अपना मन सबसे आगे
बुद्धि कुछ कहने को आगे होती तो भी
मन को अनसुना करना है
यह मन भी न
अपनी मनमानी के लिए
आजकल चर्चा में है :)
पल में खफ़ा तो  पल में खुश
इसकी मानो तो ठीक वर्ना हो गया उदास (:
लेकिन हम सही मार्ग पर हैं या नहीं
इसके लिए बुद्धि को इसकी लगाम
अपने हाथों में रखनी होगी
ताकि आत्‍मा हमें
नेक राह पे ले जा सके ... !!!

शुक्रवार, 23 मार्च 2012

उसकी हंसी में खिलखिलाकर ...
















उपकार के प्रति तुम
कृतज्ञता का भाव रखते हो मन में जब
तो क्‍या करते हो बदले में
उसके लिए विनम्र हो जाते हो
या नतमस्‍तक हो
उसका अनुसरण करने लगते हो
उसकी हर खुशी का
ख्‍याल रख उसके आगे-पीछे हो
उसकी ढाल बन जाते हो 
सोचो क्‍या उसने तुम पर
इसलिए उपकार किया था
वो तो मात्र माध्‍यम था
तुम्‍हारे लिए...
जो वह निष्‍कपट हो बन गया 
बस यह सोचकर
कभी तुम्‍हें भी अवसर मिले
तो किसी अंजान शख्‍़स पर
उपकार कर देना ...
किसी मासूम बच्‍चे के 
सिर को सहलाकर
उसकी  हंसी में खिलखिलाकर
शामिल हो जाना ... 


मंगलवार, 13 मार्च 2012

बजट चक्र और आम जन ...


हम आम जन सामान्‍य सी भाषा में  आय और व्‍यय की सूची को बजट कहते हैं, बजट किसी देश, संस्‍था, व्‍यक्तिगत अथवा किसी परिवार का भी हो सकता है, यह भविष्‍य में किये जाने वाले व्‍यय का हिसाब है जिसे हम वर्तमान में बनाते हैं, हर साल की तरह इस साल भी मार्च माह में बजट पेश होने जा रहा है ... केन्‍द्रीय बजट भारतीय राज्‍य के राष्‍ट्रीय जीवन में अपनी भूमिका और भागीदारी को ठोस रूप देता हुआ साल दर साल बदलता हुआ यह एक विचारणीय मुद्दा है बजट में सरकार की आर्थिक नीतियों का स्‍पष्‍ट संकेत मिलता है, इसके बनने की प्रक्रिया काफी लंबी और जटिल होने के साथ-साथ अति गोपनीय भी होती है बजट भाषण पूरा होने के सात दिन पहले से बजट से जुड़े सभी अधिकारी और कर्मचारियों का बाहरी दुनिया से कोई सम्‍पर्क नहीं रहता है ... संसद में बजट पेश किए जाने से 10 मिनट पहले कैबिनेट को इसका संक्षिप्‍त रूप दिखाया जाता है।
अब सवाल यहां आम आदमी के बजट का या परिवार का आता है जहां घर खर्च की जरूरी चीजों के साथ बढती मंहगाई के बीच एक वर्ष तो दूर की बात एक माह का बजट भी अव्‍यवस्थित हो उठता है क्‍योंकि यहां दैनिक उपयोग में आने वाली वस्‍तुओं के दामों में जिस तरह से बढ़ोत्‍तरी होती है वहां किस खर्च को कितना और किस तरह सुनिश्चित किया जाए यह एक बड़ा सवाल बन जाता है ...केन्‍द्रीय बजट जहां अपनी जटिलताओं के चलते गोनपीय ढंग से बनाया जाता है उसमें आज भी वही पुराना ढर्रा कायम है जिसमें आम जन के उपयोग में आने वाली वस्‍तुओं को अनदेखा कर दिया जाता है जब कभी भी हुआ रसोई गैस एवं पेट्रोल के दामों में वृद्धि कर दी जाती है इस पर ध्‍यान देने के साथ सकारात्‍मक बदलाव की आवश्‍यकता भी है जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता।

यहां तो उद्योंगों का भार भी आम जनता के माथे पर मढ़ दिया जाता है अब बात हो रही है बिजली पर वैट लगाने की ... बिजली पर वैट लगाने से आम लोगों पर दुहरी मार पड़ेगी उसे अपने घर के बिल से तो झटका लगेगा ही ... उद्योग-धंधों पर पर बढ़े बोझ का भार भी उसे उठाना पड़ेगा आम लोगों के उपयोग की चीजों के दाम बढ़ेंगे जिन्‍हें मंहगे दामों पर खरीदना होगा इस एक फैसले से सभी पर असर पड़ेगा जब उद्योग अपने उत्‍पाद मंहगे करेंगे तो प्रतिस्‍पर्धा में पीछे होंगे बाजार में पहले से ही सस्‍ते चाइनीज़ माल की भरमार है ।

बजट की सार्थकता तो तभी सिद्ध होती है जब जन पक्षीय बजट पूर्व दुराग्रहो को दूर करते हुए लकीर का फ़कीर न बनते हुए पेश किया जाए ताकि आम जन भी कुछ राहत महसूस कर सके ।

बुधवार, 7 मार्च 2012

आप सबकी पहचान आपकी कलम ...















इस बार महिला दिवस और होली दोनो का एक साथ आ जाना ... कौन जाने किस सत्‍य से परिचित करा रहा है यह दिन ..सच कहूं तो रंग खिलते भी वहीं हैं जहां स्‍त्री का सम्‍मान होता है  इस सम्‍मान के लिए क्‍या कोई एक दिन निश्चित  होना चाहिए .. हम मन में विकास की सोच रखें ऊपर उठने की इच्‍छा को बलवती रखें और जड़ों को कमजोर करते चलें या उन्‍हें कलंकित करने में किसी तरह की कसर न छोड़ें ... हत्‍या कर दें गर्भ में जिसकी यह भूलकर कि हमारी जननी भी यही है ये न होगी तो हमारा अस्तित्‍व ही क्‍या ... इन सब बातों का सिलसिला लम्‍बा चल सकता है लेकिन ब्‍लॉग जगत में भी कई ऐसी शख्सियत हैं जिनकी लेखनी के आगे नतमस्‍तक होने को जी चाहता है मुझे लगा इन सबको एक साथ आपके सामने लाऊँ अपनी नज़र से सबसे पहले चलते हैं हम....  आप सबकी पहचान आपकी कलम ... और आपका अपना ब्‍लॉग .. जिसके माध्‍यम से हम अपनी बात अपने विचार सबके साथ साझा कर सकते हैं ...
आदरणीय रश्मि जी के ब्‍लॉग पर इस बार इनकी महिला दिवस पर लिखी गई पोस्‍ट एक गहन सच्‍चाई लिए हुए है जिससे हम इंकार नहीं कर सकते ... कितनी दृढ़ता से वे कह रही हैं नहीं चाहिये दिवस ....
आगे बढ़ते हुए नज़र जहां जाती है वहां आदरणीय संगीता स्‍वरूप जी दिखाई देती हैं ... जिंदगी की महाभारत
के साथ आदरणीय वंदना जी को पढ़ते हुए आगे बढ़ेंगे ... जहां हैं होली के अनोखे रंग ...रंगों की बातें ...
आदरणीय साधना जी की इस प्रस्‍तुति में जहां है ... प्रतीक्षा
यहां रेखा श्रीवास्‍तव जी होली की अद्भुत छटा बिखेर रही हैं रंगों के साथ  ... होली ... होली ... होली ...
रंगों की इस मस्‍ती के बीच शमा जी कहती हैं  ... दीवारें बोलती नहीं
तो वाणी जी का कहना है कुछ ये ... छोटी पहचान लम्बा इंतज़ार....
तो है पर डा. मोनिका जी बता रही हैं कि स्‍वयं ....तय करें अपनी प्राथमिकतायें
अपनी प्राथमिकताओं में मत भूलें ... रचना दीक्षित जी के अनुसार ... खबर की दुनिया
में एक नाम और भी है प्राथमिकता के साथ ... अर्चना चावजी  का
डा. दिव्‍या ने कहा है चिर युवा हैं भारत माता बिल्‍कुल सच उनकी बात से सहमत भी हूं ...
दर्द की बात हो यह क्षणिकाओं की एक नाम सबसे पहले आता है ... इनका हरकीरत हीर जी
फिर है मंद बयार जहां इंदु जी के शब्‍दों में उनका ब्‍लॉग हृदयानुभूति पर यहां देखा इन्‍ह‍ें तो आइए आप भी ..
आपके सानिध्य में दिन-रात जो रहने लगा हूँ....... ने कहा है मृदुला प्रधान जी ने ...
कहा तो कुछ मेरी कलम से .. में हैं आपके साथ रंजना भाटिया जी
 हंसकर जीवन ऐसे जिया बता रही हैं अनुपमा जी मेरी तो मंशा यही है कि
सबको साथ लेकर चलूं ... लेकिन कहीं आप सब मुझे मन ही मन ... कुछ कह तो नहीं रहे ... अब ज्‍यादा नहीं बस ...
हमारे ब्‍लॉग जगत की नई कलम के ऐसे हस्‍ताक्षर जिनकी चर्चा न हो तो सब सूना लगेगा ...
इनकी लेखनी भी बहुत ही सशक्‍त एवं परिपक्‍व है ... मिलते हैं अनुलता 'विद्या' जी से यहां ...
नारी सर्वत्र पूजिते ... बस कहते सुना है लोगों को ...  जिसने हिम्‍मत कभी ना हारी है वो नारी है ....
सखियों ने भेजा संदेश ... कह रही हैं अवंती सिंह जी यहां .. आओ होली आई है
आप सभी को साथ लाने का यह प्रयास था संभव हुआ या नहीं यह तो आप ही को बताना है ... शुभकामनाएं एक दिन की नहीं .... बल्कि हर दिन की चलते-चलते ... शिखा जी यहां हैं ...जय हो !