दर्द आज़ अपनी ही पीड़ा को
पीना चाहता है आँसुओं की शक्ल में
सिसकियों का रूदन
कब चिन्हित हुआ रूख़सार पर
वो हतप्रभ है औ भयाक्रान्त भी
इस आक्रोश पर
सर्जक का आवेग बहा ले जाता है
अपनी ही मैं में
बिना किसी की कोई बात सुने
....
ज़बां का खामोश होना
सारे प्रयासों को विफ़ल कर हर बार
दाग देता अपने ही जि़स्म में
अनेको शब्द बाण
आहत हो मन खुद की शैय्या तैयार कर
विचलित सा अंत की प्रतीक्षा में
अनंत पलों का संहार कर
विषादमय हो
बस प्रतीक्षा करता है अंत की
अनंत पलों तक
पीना चाहता है आँसुओं की शक्ल में
सिसकियों का रूदन
कब चिन्हित हुआ रूख़सार पर
वो हतप्रभ है औ भयाक्रान्त भी
इस आक्रोश पर
सर्जक का आवेग बहा ले जाता है
अपनी ही मैं में
बिना किसी की कोई बात सुने
....
ज़बां का खामोश होना
सारे प्रयासों को विफ़ल कर हर बार
दाग देता अपने ही जि़स्म में
अनेको शब्द बाण
आहत हो मन खुद की शैय्या तैयार कर
विचलित सा अंत की प्रतीक्षा में
अनंत पलों का संहार कर
विषादमय हो
बस प्रतीक्षा करता है अंत की
अनंत पलों तक