शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2012

उसके लिए तो ... !!!















उजड़ जाना ... या वीरान होना
इससे तुमने क्‍या सोचा
जरूर मैं किसी गुलशन की बात कर रही हूँ
नहीं .. नहीं ... वहां तो बहार
प्रकृति ले ही आती है बसंत
खिल उठते हैं फूल
झूम उठती हैं टहनियॉं
धरती को चूमने के लिए
फिज़ाओं में घुल जाती है खुश्‍बू
बागवां के चेहरे पे चमक अनोखी होती है
इन दिनों ... पर
मेरी आंखों में
वीरानी तो उस घर की है
जहां के बच्‍चे परदेस में बस गए 
घर की सूनी दहलीज़ पे
ठहरती नज़रों को बस डाकिये का इन्‍तज़ार रहता 
शायद भूले से बच्‍चो ने लिख भेजा हो कुछ
मां को नहीं आता मैसेज लिखना
नहीं कर पाती ई-मेल बच्‍चों को
ये सुविधाएं होकर भी न होने जैसे होती हैं 
उसके लिए तो ...
मोबाइल पर ... जब घंटी बजती है तो
कई बार हरे की जगह वो लाल बटन दबा देती
और उसके बजने की आवाज भी बंद हो जाती
मन ही मन अपनी इस हरकत पर
खीझ उठती ...माँ
हर तरफ उदासी ही दिखती है उसे
दीवारों के रंग धुंधले नज़र आते हैं या उनमें भी
आंखों की उदासी उतर आई है
समझ नही पाती .... 

शनिवार, 18 फ़रवरी 2012

चेहरे पे मुस्‍कान :) कैसे आएगी ...
















दु:खी होने के लिए
अब बड़ी घटनाओं की
जरूरत नहीं रही मन को
वो यूँ ही कभी  भी
हो जाता है अनमना
सब कुछ सही होते हुए
जब भी
नासमझी के लक्षण दिमाग में
उथल-पुथल कर देते
वक्‍़त-बेवक्‍़त
जब भी इसकी-उसकी परव़ाह की
बात होती
मन उदास हो जाता
अब मन उदास हो तो भला
चेहरे पे मुस्‍कान :)
कैसे आएगी
लक़ीर के फ़क़ीर बनोगे जब
तो सब कुछ
एक दाय़रे में सिमटकर
रह जाएगा फि़र
आज कौन किसकी परव़ाह करता है
सब अपने लिए जीते हैं
अपनी मैं को सर्वोपरि मानते हैं
खुद की खुशियाँ
खुद के सपने वो दिन गए
जब बेग़ानी शादी में  अब्‍दुल्‍ला दीवाना
हुआ करता था ...
ये ऐसी कड़वी बातें क्‍यूँ ?
नीम का दातुन किया था न
अभी तक उसका
कसैलापन गया नहीं
या फिर सबकुछ कसैला हो गया है  
शायद  इसीलिए....!!!