शुक्रवार, 27 जनवरी 2012

बसन्‍ती गीत गुनगुना रही है ..














गेहूं की बाली ने कहा,
पीली सरसों से
देख आज पवन
मुस्‍करा रही है
लगता है ऋतु बसन्‍ती
आ रही है ...।
उधर कोयल की कूक से
मुस्‍कराती
टहनी आम की
झुककर धरती से बोली
देखो कोयल
बसन्‍ती गीत
गुनगुना रही है ...।
अम्‍बर ने कहा धरती से,
अब तो तू करना
खूब श्रृंगार
फूलों के खिलने
की ऋतु
बसन्‍ती जो आ रही है ...।

मंगलवार, 17 जनवरी 2012

कुछ कहना शेष था ....





















यह जीवन का कौन सा
अध्‍याय है
समझ नहीं पा रही हूं
कल जब से
मैने उस वृद्धा को
कचरे के ढेर पर बैठकर
रोटी के टुकड़ो को
साफ करने के बाद
आपने आंचल में
बांधते देखा
ना चाहते हुए भी
आंख नम हो गई .....
आवाज देकर पुकारने में
वह हड़बड़ा कर उठी
और तेज कदमों से
अंजान सी गली में
अदृश्‍य हो गई
उसके जाने के बाद भी
वह मुझे दिखाई देती रही
पूछता रहा मौन उसका
ये कौन सा अध्‍याय है
जिसमें अपनी  ही
लाचारी के बारे में
कुछ कहना शेष था ....

सोमवार, 2 जनवरी 2012

दर्द के एहसास ...














मौन की तड़प
बस इक संवाद
इस तड़प की
अवधि में
कितने पलछिन
गौण हो जाते हैं
जिनमें रिसते हुए
दर्द के एहसास
अनाम रह जाते है ...!!!