तुम संवेदनशील हो
बहुत अच्छा है
हर कोई अपना मतलब सिद्ध
कर लेता है गाहे-बग़ाहे
तुम्हारी संवेदनाओं की छतरी में
बारिश से बचने के लिए
और चिलचिलाती धूप में
थोड़ी सी छांव के लिए
तुम आधे भीगने का आनंद लेकर
उसे पूरा सूखा रखते हो
जलती धूप में अपनी बांह की
कोहनी तक बहते पसीने में भी
उसे छांव के नीचे रहने का सुकून देते हो
...
लेकिन जब तुम्हारी बारी आती है तो
उसी सामने वाले को
चक्कर आने लगते हैं
गिरगिट की तरह रंग बदलकर
छतरी बंद कर देता है
और लाठी की तरह टेक बनाकर
तुम्हारे कांधे का सहारा लेकर
चलने लगता है
....
नहीं समझे !!! तुम्हें समझना आता ही नहीं
यही तो समस्या की जड़ है
तुम संवदेनशील लोगों की
जिन्हें अच्छाई का दाना खिलाया गया
संस्कारों का पानी पीकर तुम बड़े हुए
फिर भला कैसे तुम
संवेदनशील नहीं होते
तुम्हारा मन क्यूँ नहीं पसीज़ता
किसी को मुश्किल में देखकर
...
लेकिन सब बदल रहे हैं
तुम कब बदलोगे ?
थोड़ा तो ज़माने के साथ चलो
वर्ना लोग क्या कहेंगे ???
बहुत अच्छा है
हर कोई अपना मतलब सिद्ध
कर लेता है गाहे-बग़ाहे
तुम्हारी संवेदनाओं की छतरी में
बारिश से बचने के लिए
और चिलचिलाती धूप में
थोड़ी सी छांव के लिए
तुम आधे भीगने का आनंद लेकर
उसे पूरा सूखा रखते हो
जलती धूप में अपनी बांह की
कोहनी तक बहते पसीने में भी
उसे छांव के नीचे रहने का सुकून देते हो
...
लेकिन जब तुम्हारी बारी आती है तो
उसी सामने वाले को
चक्कर आने लगते हैं
गिरगिट की तरह रंग बदलकर
छतरी बंद कर देता है
और लाठी की तरह टेक बनाकर
तुम्हारे कांधे का सहारा लेकर
चलने लगता है
....
नहीं समझे !!! तुम्हें समझना आता ही नहीं
यही तो समस्या की जड़ है
तुम संवदेनशील लोगों की
जिन्हें अच्छाई का दाना खिलाया गया
संस्कारों का पानी पीकर तुम बड़े हुए
फिर भला कैसे तुम
संवेदनशील नहीं होते
तुम्हारा मन क्यूँ नहीं पसीज़ता
किसी को मुश्किल में देखकर
...
लेकिन सब बदल रहे हैं
तुम कब बदलोगे ?
थोड़ा तो ज़माने के साथ चलो
वर्ना लोग क्या कहेंगे ???