इल्जाम दिये हैं अपनों ने कुछ इस तरह,
उपहार दिये जाते हैं हंस के जिस तरह ।
दुआओं की हसरत नहीं थी कभी भी मुझे,
सोचा न था मिलेंगी बद् दुआयें इस तरह ।