गुरुवार, 19 अगस्त 2010

किनारों पर ....







ढूंढा करती हैं तुझको अब भी जाती हुई

सूरज की किरणें नदिया के किनारों पर ।

पत्‍थर वो नदी के सूने हैं जिन पर बैठ,

रखते थे निगाह आती जाती धारों पर ।

नहीं मिलते बचपन के साथी कोई यहां,

रहते थे यहां जो बारिश की बौछारों पर ।