देर आये दुरूस्त आये कहना सही न होगा, हमारी चेतना जागृत हुई लेकिन जब इनकी संख्या बची मात्र 1411 जंगल का राजा बाघ इसकी राजसी जीवन शैली के साथ इसकी आक्रामकता जिसको देख सभी भयभीत होते रहे हैं, और इससे बचकर निकल जाने में ही अपनी भलाई समझते थे, परन्तु आज इनकी कम होती संख्या को देख सजग नागरिक चिंतित हैं, कि आने वाले समय में क्या हम इसे तस्वीरों में ही देख पाएंगे, या यह वास्तव में अभ्यारण्य की शान बढ़ाते हुये आगे भी जीवित रहेंगे, अब हम पर इनकी सुरक्षा का दायित्व है, इनका शिकार कर असमय इन्हें काल के गाल में भेजना शोभा नहीं देता, कभी इसकी धारीदारी खाल मन मोह लेती या इन्हें अपने निशाने पर लेने का शौक इनकी मौत का कारण बन जाता है, राष्ट्रीय पशु बाघ की सुरक्षा के लिये कदम उठाना नितांत आवश्यक हो गया है, मां दुर्गा की सिंह सवारी के रूप में ख्यातिप्राप्त यह चित्रों और मूर्तियों में गढ़ा जाने वाला क्या इसी रूप में स्मृतिवान रहेगा, या फिर अभ्यारण्य में अपनी खूंखार गर्जना से गुंजायमान रख पाएगा, यह सोचनीय विषय है, यह राह है तो दुर्गम परन्तु कुछ लोग साथ मिलकर एक स्वर में 1411 को सुरक्षित रखने का बीड़ा उठाएंगे तो मुश्किलें कुछ हद तक कम हो जाएंगी, इसी विश्वास के साथ की आप भी आगे आएंगे अपने विचारों के साथ ।
शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2010
1411 की सुरक्षा करें ....
बुधवार, 3 फ़रवरी 2010
गुमनाम होता सर्कस ....
सर्कस यह नाम शायद आने वाली पीढ़ी के लिये अपरचित हो जाएगा, बदलते दौर में करतबों की बाजीगरी अब मुश्किल हो चली है, जहां एक डेढ़ दशक पहले जिस शहर में सर्कस लगना होता था, इसके तम्बू व पण्डाल लगते ही लोग रूचि लेने लगते थे कि कब शुरू होगा, और अब इसका बिल्कुल उल्टा होने लगा है, अब सर्कस कम्पनी शहर में प्रवेश करते ही प्रचार-प्रसार करने लगती है कि दूर-दराज के लोग भी इसे देखने के लिये पहुंच सकें, किसी भी शहर में कम से कम अवधि इसकी एक माह होती है, 25-30 वाहनों के काफिले में इनका पूरा साजो-सामान पहुंचता है और फिर एक बड़ा तम्बू लगाकर इसका रिंग तैयार किया जाता है, जिसके चारों तरफ दर्शकों के बैठने की व्यवस्था रहती है। सर्कस में तरह-तरह के वन्य प्राणी भी रखे जाते हैं, जो दर्शकों का मनोरंजन करते हैं लेकिन आजकल कुछ वन्य प्राणियों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है पहले शेर और हाथी इसका मुख्य आकर्षण हुआ करते थे, लेकिन अब शेर पर तो प्रतिबंध लगा दिया गया है जिसकी वजह से सर्कस पूरी तरह से इसमें शामिल सदस्यों पर ही निर्भर रह गया है जिसमें कई तरह के मंझे हुये कलाकार होते हैं जो अपनी कला से दर्शकों में एक रोमांच पैदा करते हैं लड़कियां भी इसमें अपने सधे हुये करतब दिखाती हैं, सर्कस खतरों से भरा हुआ एक ऐसा क्षेत्र है जहां जरा सा भी आप फिसले तो आपकी जिन्दगी के लेने देने पड़ सकते हैं, फिर भी इसमें जुड़े हुये कलाकार एक से बढ़कर एक कलाबाजियां दिखाते हैं कि आने वाले दर्शकों का मनोरंजन हो सके, लेकिन अब वह पुराने दिन लौटकर आने वाले नहीं लगते और सर्कस धीरे-धीरे गुमनामी के अंधेरे में खोता जा रहा है।
सर्कस के एक ग्रुप में करीब डेढ़ सौ लोग रहते हैं इनका प्रतिदिन का खर्च ही तीस हजार के ऊपर का होता है, पर्याप्त मात्रा में दर्शकों का न पहुंचना, इनके बन्द होने की स्थिति निर्मित कर रहा है, लोगों की रूचियों के बदलते भागम भाग एवं रोजमर्रा की बढ़ती जरूरतों के चलते पर्याप्त संख्या में दर्शकों के न मिल पाने से कई सर्कस तो पहले ही बन्द हो चुके हैं और जो गिने-चुने चल रहे हैं वह भी मुश्किलों का सामना कर रहे हैं, कब तक यह बदहाली की मार झेल पाते हैं कह पाना मुश्किल है ।