हर कश्ती का ख्वाब होता है समन्दर,
पर हर कश्ती डरती है इक सुराख से ।
मानव तन पे अभिमान जीते जी कितना,
अंत होता तन का तो बन जाता राख ये ।
आस्था जो कि विश्वास का दूसरा रूप है, अब वह किसी के प्रति हो, चाहे ईश्वर के प्रति हो, माता-पिता के लिए हो, अपने गुरूजनों के लिए हो, मन में जाने कैसे इसके बीज अंकुरित हो जाते हैं जब से हम होश संभालने लायक होते हैं, आजकल तो नासमझ छोटे बच्चे भी जब देखते हैं कि हम अपने देवघर या पूजा के लिये बनाये गये अपने आस्था के छोटे से कोने में ईश्वर को नमन करते हैं तो वे भी अपने विवेक से वहां अपना शीष झुका लेते हैं, हमें उन्हें सिखाने की जरूरत नहीं पड़ती और हम अपने बड़ों को देखते-देखते जाने कब आस्थावान हो जाते हैं, पता ही नहीं चलता, जरूरी नहीं कि हम आस्तिक होंगे तभी आस्था हममें पनपेगी, क्योंकि नास्तिक के मन में भी किसी ना किसी के लिये श्रद्धा तो होती ही है वो भी किसी न किसी पर तो विश्वास करता ही चाहे उसका अंश कितना भी हो, परन्तु आस्था तो उसके भीतर है ही फिर चाहे वह ईश्वर के प्रति हो या अपने बड़े बुजुर्गों के प्रति वह आस्थावान तो है ही .....इस सृष्टि की रचना करने वाला कोई इंसान तो नहीं, धरती के सीने में किसान अन्न का एक दाना बोता है तो जाने कितने ही दाने उगते हैं इन दानों में छिपा कोई तो है प्रकृति कण-कण में हमें इस ओर इंगित करती रहती है कि कोई तो है जिस वजह से यह संसार चल रहा है, और यह एक परम सत्य है जो हमें आस्थावान बनाता है ....
हमारी आस्था किसमें है
उन संस्कारों में
जो हमें अपने बुजुर्गों से मिले हैं
या फिर
मन्दिर में रखी उन बेजान
पाषाण प्रतिमाओं में है
जो हमें
घोर निराशा के क्षणों में भी
अपने पास खींच ले जाती हैं
जिनमें हम महसूस करते हैं
ईश्वर का अंश
या कोई ऐसा जिसके
आगे श्रद्धान्वत होने को जी चाहे ।
आज की नारी में अदम्य साहस एवं शक्ति की कमी नहीं, इस बात का परिचय दिया कल 25 नवम्बर बुधवार को हमारी महामहिम महिला राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभादेवी पाटिल ने अत्याधुनिक लड़ाकू विमान सुखोई-30 में उड़ान भरकर इतिहास रच दिया, ऐसा करने वाली वह दुनिया की पहली महिला राष्ट्राध्यक्ष हैं, सुखोई में करीब 30 मिनट तक उड़ान भरने वाली 74 वर्षीय सबसे उम्र दराज महिला का रिकार्ड भी उनके नाम दर्ज हुआ जो कि समस्त महिलाओं के लिये गर्व की बात है, बेटियों के जन्म पर दुखी होने वाले माता-पिता को भी सीख लेनी चाहिए की यदि वह अपनी बेटी को सही शिक्षा-दीक्षा देते हैं तो वह उनका नाम रौशन करने में पीछे नहीं हटेगी फिर चाहे वह खेल का मैदान हो, या देश की सत्ता संभालना हो, सुखोई की इस उड़ान में उनकी यही प्रेरणा व संदेश था हम सभी के लिये कुछ करने का साहस या जज्बा यदि मन में हो तो मुश्किलें खुद-ब-खुद पीछे हट जाती हैं।
धूप सुनहरी कभी इतनी हो जाती कि उसकी चमक आंखों में समा जाती ऐसे कुछ दिखाई न देता चमक के सिवा सूरज इस समय अपनी चरम सीमा में होता, उसे देख पाना इन नाजुक निगाहों से कितना मुश्किल होता है, जैसे सफलता के पायदानों की अन्तिम सीढ़ी पर जब पैर पड़ता है तो कुछ लोगों को सब कुछ बौना दिखाई देता है वे सिर्फ सोचते हैं कि वे ही श्रेष्ठ कर्ता हैं, उन्होंने ही कर्म किया, बाकि सब नगण्य, बहुत फर्क होता है इस मानवी सोच के परे जाना, भूल जाते हैं वह सूरज अपनी इस चरम सीमा पर ऊर्जा देता है जीवन को जीने की, नहीं भूलता वह ढलना सांझ को, स्वर्णिम आभा बिखेरना शाम को, जब पक्षियों के लौटने का समय होता है तो शीतल बयार के बीच ढलता सूरज अपने प्रकाश से दिशा निर्देशित करता है ।
तकते हैं राह,
घर बैठे नन्हे छौने,
आएंगे दाना लेकर
उनके अपने ।
चोंच में प्रेम से
अन्न के कुछ दाने,
लाएंगे
उनके लिए
जिन्होंने सीखा नहीं
उड़ना ।
उनकी उड़ानों को भी
पर लग जाएंगे
एक दिन वे भी
दूर गगन में जाएंगे
पिंकी आज अपनी दीदा मां से जिद कर रही थी हां वह अपनी दादी को प्यार से दीदा ही कहा करती है .... मुझे कोई कहानी सुनाओ ना मैं और कहानी ... दादी ने हंसते हुये कहा, क्या कहा कहानी सुनेगी आज ? हां मैने टी.वी. पर देखा है दादी जो होती है उसे अच्छी-अच्छी कहानी आती है, पर तूने आज से पहले तो कभी कहानी सुनाने को नहीं कहा, तू वही अपने कार्टून देखती रहती है मिकी माउस, डोनल्ड डक, गूफी या फिर कम्प्यूटर पर गेम खेला करती है, पर आज तो मुझे कहानी सुननी ही है वर्ना मैं गुस्सा हो जाऊंगी, दीदा ने जल्दी से उसे मनाया नहीं-नहीं मेरी गुडि़या रानी मैं तुम्हें कैसे नाराज कर सकती हूं तुम्हीं तो मेरी हंसने और मुस्कराने की वजह हो वर्ना बाकी तो सब अपने-अपने काम पर लगे रहते हैं और मैं अपने कमरे में, अच्छा अब सुनाओ ना.... तुम्हे पता है बेटा जब यह टीवी शुरू-शुरू में आया था उसके पहले लोग रेडियो के दीवाने हुआ करते थे, ऑल इंडिया रेडियो, विविध भारती, सिबाका गीत माला जिसमें लोग गीतों से सजी हुई इस महफिल के साथ अमीन सयानी की बातों के दीवाने थे, कोई किसी को बात नहीं करने देता था आपस में बस सब ध्यान से कान लगाकर इनके गीतों और बातों का मजा लिया करते थे, उस समय तो बहुत ही कम गिने-चुने घरों में ही कलर टीवी हुआ करता था, बाकी सब जगह तो वही अपना ब्लैक एंड व्हाइट टीवी ही था और तब इतने चैनल भी नहीं हुआ करते थे सिर्फ एक दूरदर्शन ही था जो लोगों का मन बहलाता था, उसके भी सीमित कार्यक्रम हुआ करते थे, पर जब कोई नई चीज घर पर आती है तो उसका इतना उत्साह की पूछो ही मत, बच्चे तो बिल्कुल दीवाने हो गये थे टीवी के, तब चाहे शाम को कृषिदर्शन आता रहता था तो भी नजरें टीवी पर ही लगी रहा करती थीं, सप्ताह में एक या दो दिन ही चित्रहार के नाम से आधे घंटे का कार्यक्रम आता था फिल्मी गीतों का गीतों के शौकीन इस कार्यक्रम को छोड़ना नहीं चाहते थे रविवार को सुबह-सुबह रंगोली से दिन की शुरूआत किया करते थे, उस समय के लोकप्रिय कार्यक्रमों में थे बुनियाद, ये जो है जिन्दगी, पर सबसे ज्यादा टीवी बिके जब रामानन्द सागर की रामायण आना शुरू हुई पूछो ही मत सड़के सूनी हो जाया करती थीं पता चलता था कि टीवी पर रामायण आ रही है लोग तो बिल्कुल भक्तिमय हो गये थे, फिर बी.आर. चोपड़ा की महाभारत, ने एक इतिहास रच डाला लोग जल्दी-जल्दी अपने काम खत्म करके टी.वी. देखने के लिये समय से बैठना जो होता था, बड़ा मजा आता था जब सब इकट्ठा होकर कोई प्रोग्राम देखा करते थे, और अब घर-घर आ गये हैं कलर टीवी और उसके साथ ही केबिल कनेक्शन का जाल सा फैल गया इनके आने से तो थियेटर सूने हो चले हैं, थोड़ी बहुत जो कसर थी वह पूरी कर दी इन डिश टीवी वालों के साथ-साथ, सी.डी. व डी.वी.डी. प्लेयर ने, पिंकी ने दादी मां के गले में बाहें डालते हुये बड़ी मासूमियत से कहा अरे दीदा तुमने तो मुझे कहानी कहां टीवी का पूरा इतिहास ही सुना दिया तुम बहुत अच्छी हो, हां बेटा पर यह सब तो अब तो गुजरे जमाने की बातें हो गई हैं ।
उज्जैन के हास्य व्यंग्य के प्रसिद्ध कवि स्व. ओम व्यास की प्रमुख कविता मां को अगले शिक्षण सत्र से स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल किया जाएगा यह समाचार आज पढ़कर मन में एक सुखद अनुभव हुआ मध्यप्रदेश शासन का यह प्रयास स्वागतयोग्य एवं सराहनीय कहा जाएगा मुख्यमंत्री जी का यह कथन की कविता मां समाज को एक नया संदेश देती है जिसे अगले शिक्षण सत्र से माघ्यमिक स्तर के पाठ्यक्रम में शामिल किये जाने और उनके जन्म दिन 25 नवम्बर को प्रतिवर्ष यहां हास्य व्यंग्य का भव्य कार्यक्रम सरकार की ओर से आयोजित किये जाने की भी घोषणा की यह उनके लिए सही रूप से एक विनम्र श्रद्धांजलि होगी ।
समाज का हर व्यक्ति जागरूक हो और समाज में फैली बुराईयों को जड़ से खत्म करने का संकल्प मन में हो तो कोई भी बाधा सामने नहीं आ सकती, एक बेहद अनुकरणीय उदाहण के रूप में सामने आई यह नई पहल उजागर हुई है हरियाणा से कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए ‘आंठवां फेरा’ हमारे समाज की पारंपरिक रचनात्मकता और विचारशीलता का अच्छा उदाहरण है । इस समस्या को प्राय: जागरूकता की कमी का नतीजा माना जाता रहा है और कानूनी कार्यवाई के जरिए हल करने की कोशिश की जाती रही है। विवाह के सात फेरों के साथ आंठवें फेरे के रूप में कन्या भ्रूण हत्या नहीं करने की शपथ दिलाकर पहली बार इसे दांपत्य के रीति रिवाजों से जोड़ा गया है । इसे आने वाले समय में यदि व्यापक रूप से अपनाया जाये तो एक जघन्य बुराई से मुक्ति पाई जा सकती है, बेटे एवं बेटी का समान रूप से पालन पोषण किया जा सकता है ।
वक्रतुंड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ ।
निर्विघ्नं कुरू में देव सर्व कार्येषु सर्वदा ।।
विध्नहर्ता, मंगलकर्ता भगवान गणेश आप सभी के साथ हमारे घर भी विराज चुके हैं, जब गणपति जी घर आयें हैं तो आइये जानते हैं इनके बारें में यूं तो इनके अनेक नाम हैं, परन्तु यह 12 नाम जो कि प्रमुख हैं –
!! एकदन्त !! !! सुमुख !! !! कपिल !! !! गजकर्णक !! !! लम्बोदर !! !! विकट !!
!! विनायक !! !! धूम्रकेतू !! !! गणाध्यक्ष !! !! भालचन्द्र !! !! विध्न-नाश !! !! गजानन !!
पिता – भगवान शिव
माता – भगवती पार्वती
भाई – श्री कार्तिकेय
बहन – मॉं संतोषी
पुत्र – दो (1) शुभ (2) लाभ
पत्नी – दो (1) रिद्धि (2) सिद्धि
प्रिय भोग – मोदक
प्रिय पुष्प – लाल रंग के (विशेष) गुड़हल
प्रिय वस्तु – दुर्वा (दूब)
वाहन – मूषक
आप सभी को गणेश उत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं
भारत रत्न पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के साथ यहां इन्दिरा गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर एक अमरीकी एयरलाइंस द्वारा जबरन जांच किये जाने के मामले को पूरे तीन महीने तक दबा कर रखा गया डा. कलाम कुछ दिनों पहले अमरीकी एयरलाइंस कांटिनेंटल एयरलाइंस से नेवार्क जा रहे थे लेकिन जब वह विमान में सवार होने के लिये एयरो ब्रिज की ओर बढ़े तो एयरलाइंस के अधिकारियों ने उन्हें पंक्ति में खड़े होने को कहा, इस पर उनके साथ आए अधिकारियों ने एयरलाइंस के कर्मचारियों को पूर्व राष्ट्रपति के बारे में जानकारी दी जिसे सुनकर भी अनसुना कर दिया गया और डा. कलाम के पर्स, मोबाइल निकलवा लिये उनके जूते भी उतरवाकर जांच की और फिर उन्हें विमान में सवार होने दिया।
इस बारे में जो कोई भी सुनता है व पढ़ता है उसे चोट पहुंचती है पूरे देश में उनकी लोकप्रियता से कोई भी अछूता नहीं है फिर भी ऐसे गणमान्य नागारिक के साथ ऐसी हरकत होना विचारणीय हो जाता है पूरे देश में कांटिनेंटल एयरलाइंस की इस हरकत की आलोचना की जा रही है परन्तु इनका कहना है कि डा. कलाम को सुरक्षा जांच में छूट नहीं है, वे भारत में अपनी एयरलाइन्स चला रहे हैं और अमेरिकी आंतरिक सुरक्षा के नियमों की बात कर रहे हैं। परन्तु उन्हें किसके साथ कैसा व्यवहार करना है इसका ध्यान तो रखना ही होगा, सरकार को भी ऐसे मामलों में किसी प्रकार की शिथिलता नहीं बरतना चाहिए ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो सके।
नसरीन मुन्नी कबीर : भारतीय संगीत और राजनीति के महान लोग गुजर चुके हैं ....।
लता जी : मैं उन लोगों को सिर झुका कर नमन करती हूं, उनके गुजरने के बाद फिल्म संगीत के उस अच्छे वक्त की अब यादें हीं शेष हैं ।
अब आप पढ़ेगे एक खास बात और वह यह है . . .
चौंक गए !
क्या आप जानते हैं कि लता जी छुट्टियों का सर्वश्रेष्ठ आनन्द किस प्रकार लेती हैं ? जवाब है : लास वेगास (अमेरिका) में स्लॉट मशीनों पर रात भर दांव लगाना ।
नसरीन मुन्नी कबीर : उम्मीद करती हूं कि आप एस.डी. बर्मन के बारे में कुछ बताएंगी ?
लता जी : वे अतुलनीय संगीतकार थे, किन्तु काफी फिक्रमंद रहते थे । मुझे कभी-कभी सायनस की शिकायत रहती थी और रिकार्डिंग नहीं कर पाती थी, ऐसे में वे उत्तेजित होकर कहते थे, अरे लता नहीं करेगी तो भला मेरे गाने का क्या होगा ? वो खुद भी गजब के गायक थे, बंगाली लोक शैली में उनके गाए गानों का शायद ही कोई जवाब हो, अगर उनके हिसाब से गाना ठीक बने तो पीठ पर एक धौल का आशीर्वाद पक्का था। वे पान के बहुत शौकीन थे, यदि आपने उन्हें खुश कर लिया तो उनकी ओर पान की पेशगी पक्की। बाकी किसी की क्या मजाल कि उनसे पान खाने को पा जाये।
नसरीन मुन्नी कबीर : और किशोरकुमार क्या वे वाकई एक असामान्य व्यक्तित्व के धनी थे
लता जी : उनके बारे में कहां से शुरू करूं, वे मनमौजी व्यक्ति थे और जब हम स्टूडियो में गाना गा रहे होते तो कुछ भी हो न हो, पर हंसी का दौर जारी रहता था। वे स्टूडियो में कभी भी नाचने लगते तो कभी मुंह बनाकर गाना नहीं गाने देते।
उनसे पहली मुलाकात भी बहुत दिलचस्प थी। मैं खेमचन्द प्रकाश जी के साथ काम कर रही थी, उस मैं ग्रांट रोड मलाड के लिए ट्रेन का सहारा लेती थीा एक दिन महालक्ष्मी स्टेशन से किशोर दा भी मेरे कंपार्टमेंट में चढ़े वे कुर्ता, पजामा पहने और गले में स्कार्फ लपेटे थे, मेरे ही साथ गाड़ी से उतरे और तांगा किया। मैं घबरा गई, जब वे स्टूडियो तक पीछे चले आए। मैं भागकर खेमचन्द्र जी के पास पहुंची और बोली, अंकल, वो लड़का लगातार मेरा पीछा कर रहा है। तब खेमचन्द्र जी ने बताया, ‘अरे यह तो किशोर है। अशोक कुमार जी का भाई।’ फिर हम एक दूसरे से परिचित हुये। उसी दिन हमने किशोर के साथ फिल्म जिद्दी का ये ‘ये कौन आया रे करके सोलह सिंगार’ गाया, प्लेबैक सिंगर के रूप में किशोर की यह पहली फिल्म थी।
नसरीन मुन्नी कबीर : इस फिल्म ने देवानन्द को भी स्टार बना दिया। खेमचन्द्र प्रकाश जी के मशहूर गीत ‘आयेगा आने वाला’ के बारे में आप क्या कहती हैं ? इसके बारे में कुछ याद आता है ?
लता जी: ‘आयेगा आने वाला’ गीत के समय रिकार्डिंग तकनीक इतनी विकसित नहीं थी, इस गीत के लिए माइक को कमरे के बीच में रखा गया था और मुखड़ा ‘खामोश है जमाना’ को गाते हुये मैं माइक तक बढ़ती थी और माइक तक पहुंच कर ‘आयेगा आने वाला’ की पंक्ति गाती थीा कई रिटेक हुए, तब कहीं जाकर यह गीत रिकार्ड हो सका।
आभार ।
पुस्तक का नाम : लता मंगेशकर . . . इन हर ओन वॉयस, कनवर्सेशन विद नसरीन मुन्नी कबीर प्रकाशक : नियोगी बुक्स
हम सबने लता जी को तो बहुत बार सुना, उनकी आवाज का जादू आज भी पूर्ववत कायम है, आज आपके सामने प्रस्तुत हैं उन पर लिखी गई पुस्तक के कुछ अंश जिसमें मिलेंगे लता जी की जिन्दगी के अनछुए पहलू . . . बात 1949 की है जब फिल्म महल का गीत ‘आयेगा आने वाला’ हर तरफ धूम मचाये हुये था। रेडियो पर हर फरमाइश के बाद श्रोता उस गायिका के नाम से परिचित होना चाहते थे,जिसकी आवाज ने यह करिश्मा कर दिखाया था, आखिर एच.एम.वी. ने गायिका के नाम की घोषणा की और यह थीं लता मंगेशकर, आज लता जी 80 वर्ष की है, लेकिन उनकी आवाज आज भी 20 साल की उम्र पर ठहरी हुई है।
लंदन निवासी प्रसिद्ध वृत्तचित्र निर्देशिका नसरीन मुन्नी कबीर ने चैनल – 4 के लिये लता जी के जीवन पर 6 भागों का एक वृत्त चित्र बनाया था। इन्हीं साक्षात्कारों के आधार पर लिखित अंग्रेजी पुस्तक ‘लता मंगेशकर ...इन हर ओन वॉयस’ 15 मई – 2009 को पाठकों के सामने आई है। प्रस्तुत हैं इस पुस्तक के कुछ अनुवादित अंश, जो खोलते हैं स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर के जीवन के कुछ पन्नों को –
नसरीन मुन्नी कबीर : मुझे मालूम पड़ा था कि जब आपने ‘ ऐ मेरे वतन के लोगों’ गीत गाया था, तब पंडित नेहरू की आंखों में आंसू आ गए थे। यह कब हुआ था
लता जी : यह गीत भारत पर चीन के 1962 के आक्रमण के बाद प्रदीप जी ने लिखा था, सी. रामचन्द्र ने इसे स्वरबद्ध किया था। इसे सबसे पहले गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में 26 जनवरी 1963 को गाया गया था। वहां पर फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े कई दिग्गज दिलीप कुमार, महबूब, राजकपूर नौशाद, शंकर जयकिशन, मदन मोहन आदि भी उपस्थित थे। मैं गीत खत्म करके मंच के पीछे कॉफी पीने गई, तभी महबूब साहब भागते हुये आये और आवाज दी, ‘लता, लता कहां हो ? पंडित जी तुमसे मिलना चाहते हैं। मैं उनके साथ पंडित जी के पास गई और महबूब साहब ने मेरा परिचय कराते हुये, कहा, ‘पंडित जी यह लता है ।’ पंडित जी बोले, बेटा तुमने तो आज मुझे रूला दिया। मैं घर जा रहा हूं। तुम भी साथ चलो, हमारे यहां एक कप चाय पीने के लिए ।
हम सब तीन मूर्ति भवन गये, जो तब प्रधानमंत्री का निवास हुआ करता था। मैं कुछ शर्मीले स्वभाव की हूं, इसलिए भीड़ से अलग कोने में खड़ी थी, तभी इन्दिरा जी वहां आईं और बोलीं, अरे आप यहां है। मैं आपको आपके दो बड़े प्रशंसकों से मिलवाना चाहती हूं। ये प्रशंसक थे राजीव और संजय। ठीक इसी समय पंडित जी की आवाज आयी ‘अरे वो गायिका कहां हैं ?’ मैं कमरा पार करके उनके पास गई तो वे बोले ‘क्या तुम वह गीत एक बार फिर गाओगी ? ’ मैने नम्रतापूर्वक कहा, अभी नहीं ।
नसरीन मुन्नी कबीर : क्या आपकी उनसे दोबारा मुलाकात हुई ?
पुस्तक का नाम : लता मंगेशकर . . . इन हर ओन वॉयस, कनवर्सेशन विद नसरीन मुन्नी कबीर प्रकाशक : नियोगी बुक्स
अभी पिछले दिनों ही पढ़ने में आया कि ऐसा भी हास्पिटल है जहां हृदय रोगियों का नि:शुल्क इलाज किया जाता है, तो सोचा इसे आपके समक्ष प्रस्तुत करूं हो सकता है कि इसका लाभ किसी ऐसे व्यक्ति को मिले जिसे कि वास्तव में इसकी जरूरत हो, तो इस संस्थान के बारे में संक्षिप्त जानकारी :
हृदय रोगों से पीडि़त व्यक्तियों के लिये बेंगलुरू के व्हाइटफील्ड इलाके में स्थित श्री सत्य साईं इंस्टीट्यूट आफ हायर मेडिकल साइंस हास्पिटल किसी मंदिर से कम साबित नहीं हो रहा है । यहां आने वाले सभी हृदय रोगियों का इलाज नि:शुल्क किया जाता है।
जीं हां, बिल्कुल सही बात है यह यहां न केवल हृदय की सभी बीमारियों का इलाज नि:शुल्क होता है, बल्कि हास्पिटल में उच्च स्तर की सभी चिकित्सकीय सुविधाएं मुहैय्या कराई जाती हैं । यहां आने वालों का इलाज मानवता के लिये किया जाता है, न कि धर्म, जाति या आर्थिक स्थिति को आधार मानकर, इस सन्दर्भ में अपील आफ द पीस प्राइज लॉरेट्स फांउडेशन के चेयरमैन डा. माइकल नोबेल कहते हैं, ‘’मैने धरती पर ऐसा पहले कहीं नहीं देखा। यह पश्चिम देशों में स्थित राष्ट्रीय चिकित्सालयों से भी अद्भुत अनुभूति प्रदान करता हैा श्री साईं बाबा द्वारा बनवाया गया यह हास्पिटल तीन पहलुओं के कारण अधिक प्रभावशाली है : पहला – स्टेट आफ आर्ट टेक्नोलाजी, दूसरा – निशुल्क चिकित्सकीय सुविधा और तीसरा साईं बाबा की उपस्थिति जो रोगियों को चमत्कारिक रूप से अच्छा कर देती है।‘’
यह विश्व का पहला ऐसा हास्पिटल है, जो हृदय रोग की किसी भी बीमारी के इलाज के लिये पैसा नहीं लेता है। सबसे बड़ी बात यहां कोई बिलिंग काउंटर नहीं है।
भारत की शान ताजमहल जो कि विश्व के सात आश्चर्य में शामिल है जिसे एक नजर पास से देखने की चाहत भारत में रहने वाले ही नहीं विदेशियों के मन में भी बसी हुई है और वह इसे भारत आने पर देखने से नहीं चूकते, लेकिन इसकी शान में दाग लग रहा है इसके आस-पास का वातावरण इतना प्रदूषण युक्त हो जाता है चाहे वह तेल शोधक कारखाने के उठने वाले धुएं से हो या फिर शवदाह गृह के उठने वाले धुएं से ।
ताजमहल से लगभग सौ मीटर की दूरी पर ही दो-दो शवदाह गृह हैं, एक बिजली से चलने वाला है जबकि दूसरा पारम्परिक है, जिसमें लकड़ी से जलाकर अंतिम संस्कार किया जाता है, बिजली से चलने वाले शवदाह गृह का रखरखाव आगरा विकास प्राधिकरण के जिम्मेदारी में आता है, जबकि लकड़ी से शवों के अंतिम संस्कार जलाने का जिम्मा श्मशान घाट समिति के पास है ।
बिजली से चलने वाले शवदाह गृह की हालत इतनी खस्ता है जो कि ना होने के बराबर है, इसलिए यहां शवों को लकड़ी से ही जलाया जाता है, जिनके जलने पर उठने वाले धुएं, आग की लपटों और वायुमंडल में फैलने वाले इसके रसायनों से ताज महल की सुंदरता खत्म हो जाने की आशंका पैदा हो गई है । धुएं और आग से ताज को होने वाली क्षति से बचाने के लिये ही विद्युत शवदाह गृह का निर्माण कराया गया था, जो कि अब काफी लम्बे अर्से से खराब चल रहा है।
यदि आगरा विकास प्राधिकरण इसके लिये समय रहते सजग नहीं होगा तो ताज की सुन्दरता को कायम रखना मुश्किल होगा, उसे इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए की ताजमहल के कारण ही आगरा का पर्यटन नगरी बनना संभव हो पाया, और यदि उस ताज की ही उपेक्षा की जाएगी, या उसके रखरखाव में ही पैसों का अभाव बताया जाएगा तो फिर ताज को सुरक्षित कैसे रखा जा सकेगा ।
ताजमहल की सुन्दरता के बचाव के लिये उत्तर प्रदेश सरकार और पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को भी आगे आना चाहिए और इसके लिये सुरक्षात्मक प्रयासों में तेजी लानी चाहिए, ताकि ऐसे ऐतिहासिक स्मारकों को पूर्णतया सुरक्षा प्रदान की जा सके, आवश्यकता पड़ने पर जनसहयोग की भी मदद लेने से पीछे नहीं हटना चाहिये, ताकि यह धरोहर आने वाले समय में भी कायम रह सके, और इसकी सुन्दरता का बखान आगे भी यूं ही होता रहे।
मृत्यु हमेशा इंसान के साथ-साथ रहती है, वह इंसान नहीं जानता की कब वह उसे अपनों से दूर कर देगी, कवि अक्सर अपनी कल्पनाओं में, या एक आम व्यक्ति जो लेखक नहीं भी होता वह भी उसका जिक्र कभी न कभी कर ही देता है, परन्तु यह जब आती है तो किसी को एक पल का मौका नहीं देती कुछ कहने सुनने का . . . और रह जाते हैं अधूरे ख्वाब . . . अधूरी बातें मन की मन में ही सदा-सदा के लिए . . . ।
मेरी कल्पना में जब भी तुम आई,
’मृत्यु’ मैने उसे बताया लोगों को ।
जिसका विश्वास दिलाया मैने लोगों को ।
तुम आती हो तो तुम्हें कोई रोक नहीं पाता,
कविताओं में अपनी कई दफा बताया लोगों को ।
तालियां बजती थीं सब वाह वाह कहते थे सदा,
आज तुम मेरे साथ हो मैं बता ना पाया लोगों को ।
ये बातें दिल की अन्तिम समय बता न पाया लोगों को ।
तुम्हारी उंगली को थाम के, चल दिया बिना कुछ कहे,
मैं इस जहां से उस जहां के लिए बता न पाया लोगों को ।
मिस काल . . .कुछ याद आया आपको . . . अरे भई आज हम मोबाइल युग में जी रहे हैं जहां अधिकांशत: लोग मोबाइल धारी या जिनके पास मोबाइल नहीं है वह इसे लेने के इच्छुक हैं जब से हम मोबाइल का उपयोग अपने दैनिक जीवन में करने लगे हैं तभी से मिस काल का प्रयोग भी आम हो गया है ये काल दो दोस्तों के बीच भी हो सकती है, या फिर वह प्रेमी युगल हों अथवा पति-पत्नी अथवा बच्चे भी हो सकते हैं इस मिस काल के कई छुपे संदेश भी होते हैं जिन्हें आप अपनी सुविधानुसार समझ लेते हैं, जैसे की मैं फलां जगह पहुंच जाऊंगा तो मिस काल दूंगा, तुम घर से निकलना तो मिस काल कर देना मैं तुम्हें बाहर ही मिल जाऊंगा होने लगा है, मिस काल आने पर यह कहा जाता है कि मैने तुम्हे याद किया तो मिस काल किया . . . तो जिसके नम्बर पर यह मिस काल आता है वह भी वापस इसी तरह एक रिंग कर देता है जिसका अर्थ आसानी से यह भी लगाया जा सकता है कि मैं भी तुम्हें ही याद कर रहा हूं, या मैने तुम्हें याद किया ।
मिस काल की कहानी तो मजेदार है ही इससे भी ज्यादा आजकल एस.एम.एस. का चलन है उसमें भी गुदगुदाते चुटकले या फिर शायरी जिन्हें शायरी का शौक नहीं था उन्हें भी एस.एम.एस. के चलते शायरी करनी पड़ जाती है और समय व्यतीत करते हैं, इसके अलावा कई रियेलिटी शो भी इस एस.एम.एस. के लिये आम पब्लिक की जेबों से कितना पैसा निकलवा लेते हैं लोगों को पता ही नहीं चलता यदि आप इस गायक को विजेता बनाना है तो वोट करें, कई न्यूज चैनल भी सवाल-जवाब के चलते आपको एस.एम.एस. करने के लिये प्रेरित करते रहते हैं और चैनल वाले इसी तरह एक एस.एम.एस. की मांग करके करोड़ों का मुनाफा कमाते हैं। इसके अलावा नववर्ष, हो या होली-दीवाली एस.एम.एस. करने के लिये होड़ सी लगी होती नये-नये संदेशों का इंतजार होता रहता है, और इसकी स्थिति इस कदर गंभीर हो जाती है कि नेटवर्क मिलना मुश्किल हो जाता है ।
मोबाइल के तो कहने ही क्या हैं यदि एक दिन भी आपका यह चहेता मोबाइल आप से दूर हो जाए तो आपको लगेगा, एक अधूरापन . . . जैसे आपकी कोई प्रिय चीज गुम जाती है . . .और यह मोबाइल आपको ना चाहते हुये भी इतना व्यस्त कर देता है कि आप कोई काम कर ही नहीं पाते, कई लोगों के लिये तो मोबाइल रखना सिरदर्द के समान है, यदि आफिस में समय अधिक हो गया तो पत्नी की रिंग आ जाती है . . . जैसे तैसे काम खतम करके घर पहुंचो तो खाने की टेबिल तक पहुंचते-पहुंचते बॉस की रिंग आ जाती है, ये काम रह गया था . . .सुबह थोड़ा जल्दी आ जाना . . . या फिर वक्त बेवक्त कोई सिरफिरा व्यक्ति जिससे आपकी दूर-दूर तक जान-पहचान नहीं होती उसका फोन आ जाएगा, ना पहचानने पर भी आपका वक्त खराब हो ही जाता है ऐसे समय में लगता है इससे बड़ी मुसीबत तो दूसरी कोई है ही नहीं . . . ।
किसी चीज के फायदे हैं तो नुकसान भी . . .पहले किसी को आना हो तो इंतजार रहता था कि कब पहुंचेंगे कोई निश्चित समय नहीं होता था, और ज्यादातर वक्त इंतजार में ही बीत जाता था, लेकिन अब तो इस सुविधा के चलते तुरन्त फोन करो और पता करो की आने में कितना समय है . . . उसी हिसाब से आगे का काम होगा . . . मोबाइल तो वर्तमान समय में हमारे लिये सर्वोपरि बन चुका है आखिर हो भी क्यों कर न संगीत का आनन्द भी, इंटरनेट के साथ – साथ एक से बढ़कर एक गेम भी मिलेंगे आपको, और अपनों का सानिध्य भी . . . ।
हम बदल रहे हैं, बदलना पड़ रहा है, वक्त के साथ चलना भी जरूरी है लेकिन इस तरह ना चला जाय कि हमारा आज जो खुशियों से भरपूर है वह दुख या किसी अनजानी पीड़ा में बदल जाये । जी हां बात हो रही है आज के बच्चों की जिन्हें जल्दी है वक्त के पहले बड़े होने की . . . और हम उनकी इच्छाओं को मारना नहीं चाहते उन्हें वह सभी सुख सुविधायें देना चाहते हैं जिनसे शायद हम स्वयं अछूते रहें हों, या तब यह साधन नहीं थे जिनका लाभ हम नहीं उठा पाये . . . आज जब युवा होते बच्चों की फरमाइश होती है कि मुझे ये गाड़ी ले दीजिये या फलां मोबाइल बहुत अच्छा है तो हम चाह कर भी उनकी वह छोटी-छोटी खुशियां छीन नहीं पाते, भरसक उन्हें पूरा करने की कोशिश करते हैं लेकिन इन सब बातों से ही तो छिन रहा है उनका बचपन, केबल टीवी कम्प्यूटर, वीडियो गेम, के साथ- साथ बीत रहा है. . . किशोरावस्था की दहलीज पर कदम रखते बच्चे जिन्हें पसन्द है तो आधुनिकता भरे मोबाइल नई – नई गाडि़यां यह जीवन शैली को कहां से कहां ले जा रही हैं।
आज कुछ ही बच्चे ऐसे होंगे जो शाम के वक्त बाहर खेलने जाते होंगे, बाहर खेलने की बजाय उनकी दिलचस्पी कम्प्यूटर पर गेम खेलने में रहती है, खुली हवा का आनन्द, अपने हमउम्र बच्चों के साथ खेलने में जो आपस में अपनापन होता था, उसकी कमी सी महसूस होती है ।
बच्चों के द्वारा तेज गति से जिसतरह दुपहिया वाहन दौड़ाये जाते हैं, माता-पिता के मना करने पर भी वह उस समझाइश को नजरअन्दाज कर देते हैं, एक्सीलेटर की स्पीड की तरह वह अपने जीवन में भी तेज उड़ान चाहते हैं, उड़ान हर कोई चाहता है वक्त कीमती है लेकिन जीवन से ज्यादा नहीं, जब हम ही नहीं होंगे तो उन कामों को कौन पूरा करेगा . . . जिन्हें पूरा करने के लिये हम हवा से बातें करते हैं, तेज गति से वाहन चलाते हुये, लेकिन अपने जीवन की इतिश्री करके नहीं, या अपंग होकर दूसरे पर बोझ डालना अपने जीवन में आने वाली खुशियों को खोकर नहीं . . . आये दिन ही हमें ऐसी किसी घटना का सामना करना पड़ता है जिनसे दिल दहल जाता है . . . उन माता-पिता पर क्या बीतती है जब उनके कलेजे का टुकड़ा उनके सामने ही अपाहिज हो जाता है, और वो बुरे वक्त को कोसते हैं कि जब उनका बच्चा घर से निकला था, जाता तो वह रोज ही है परन्तु दुर्घटनाएं जीवन की दिशा बदल देती हैं . . . एक हंसता खेलता परिवार गम के साये में जीवन व्यतीत करने को मजबूर हो जाता है।
बच्चों को अच्छी शिक्षा -दीक्षा के साथ ही, छोटे-छोटे नियम कायदों का पालन करने एवं बड़ों की समझाइश पर ध्यान देने की जरूरत है ताकि वह अपने साथ-साथ अपने परिवार की खुशियां भी बरकरार रख सकें ।
सपने देखना किसे अच्छा नहीं लगता, सबकी आंखों में कोई न कोई सपना बसा होता है, हां ये बात जरूर है कि सबके सपने पूरे नहीं हो पाते लेकिन फिर भी लोग सपने देखना बन्द तो नहीं कर देते, कुछ लोगों को ऐसा जुनून होता है कि वे दुगनी गति से अपने सपनों को पूरा करने में लग जाते हैं इसी तरह एक सपना देखा था श्यामली ने नाम के अनुरूप ही सांवला रंग, तीखे नैन-नक्श चंचलता भी भरपूर थी उसमें छोटे से गांव की रहने वाली इस लड़की का सपना था तो अच्छे-अच्छे कपड़े पहनना. . . अच्छा रहन-सहन, और खाने-पीने की बेहद शौकीन, लेकिन उसे अपनी इस इच्छा को मन में ही दबाकर रखना पड़ता था, किसान पिता की सबसे बड़ी संतान थी वह और उसके बाद उसकी तीन बहने दो भाई, माता-पिता के लाख चाहने पर भी वह सब बच्चों की इच्छा पूरी नहीं कर पाते थे, हाई स्कूल तक की पढ़ाई करने के बाद वह अपने मामा के पास शहर आ गई और आस पड़ोस के बच्चों को टयूशन पढ़ाकर खुद की पढ़ाई का खर्च निकालती थी ।
उसके घर के पास ही एक पी.सी.ओ. था जहां वह कभी-कभार फोन करने के लिये जाया करती थी, वहां ही उसकी मुलाकात अजय से हुई गोरा रंग, लंबा कद, बेहद आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी था अजय, आते-जाते . . .मिलते मिलाते कब उनकी मुहब्बत परवान चढ़ गई पता ही ना चला, दोनो को अब एक- दूसरे से मिले बिना किसी काम में मन ही ना लगता, इश्क कम्बख्त चीज ही ऐसी है कि जितना छुपाओ, उतना ही लोगों को खबर होती है वही हाल इनकी मुहब्बत का भी हुआ . . . मामा को पता चला तो पहले तो वह बेहद नाराज हुये जैसा कि वह श्यामली को बेहद प्यार करते थे फिर उन्होंने उसके माता-पिता को मनाया और दोनों की शादी करा दी, अब खुशियां उनके जीवन में प्रवेश कर चुकी थीं, किसी को उसका मनचाहा प्यार मिल जाये इससे बड़ी खुशी तो कोई हो नहीं सकती ऐसा ही इन दोनों के साथ भी हुआ, अजय के परिवार में उसकी मां और छोटे भाई-बहन थे जिनकी जिम्मेदारी भी अजय को उठानी थी करीब छह माह बाद हार्ट अटैक में अजय की मां चल बसी, और अजय अपने छोटे भाई-बहन की जिम्मेदारियों को लेकर काफी सचेत हो चुका था ।
वह दिन रात इसी कोशिश में लगा रहता था कि कहां से उसकी कमाई का साधन विस्तृत हो वह कुछ दिनों से इसी उधेड़बुन में था तभी उसके एक मित्र ने उसे अपनी कम्पनी में रिकवरी आफिसर के तौर पर काम करने को कहा, पर यह काम उसे तनख्वाह के रूप में नहीं बल्कि कमीशन के रूप में मिला था, लेकिन उसने मौका हांथ से नहीं जाने दिया और लग गया उस काम में तो फिर तो उसने ना रात देखा ना दिन हर समय उसे काम ही काम नजर आता था, उसके काम का इतना अच्छा रिजल्ट देख कम्पनी वाले भी खुश . . . फिर तो उसने दूसरे आफिसों में भी सम्पर्क करना शुरू कर दिया, और धन की कमी तो होनी ही नहीं थी, जो व्यक्ति ना दिन देखता था ना रात, श्यामली भी उसका भरपूर सहयोग करती, कभी किसी तरह की उसे शिकायत ना होती कि वह उसे वक्त दे पाता है या नहीं दे पाता, घर को उसने सम्हाला तो जी तोड़ मेहनत करने की अजय ने ठानी चार-पांच सालों में उनका अपने घर का सपना भी पूरा हुआ तो ऐसा कोई सामान ना था जो सम्पन्न व्यक्ति के पास होना चाहिए, और उनके पास नहीं हो, संभलने के साथ ही पहले तो अजय ने अपनी छोटी बहन की धूमधाम से शादी की और अब उनके परिवार में भी दो बेटे थे छोटा भाई बी.कॉम कर रहा था, और सी.ए. बनना चाहता था।
अब अंजय देश की राजधानी दिल्ली में शिफ्ट हो चुका था क्योंकि चुनिन्दा कम्पनियों का काम उसके ही पास तो था, पर उसके मेहनत करने का अंदाज आज भी वही था, काम में लगता तो सब कुछ भूल जाता था, और श्यामली भी उसके कंधे से कंधा मिलाकर चल रही थी हर छोटी बड़ी चीज का ध्यान रखती थी कि किसकी क्या जरूरत है । उसकी सालों से जो ख्वाहिश थी वह आज पूरी होती सी महसूस हो रही थी . . . ।