तुम्हारी खामोशी के बीच
सन्नाटा घुटनों के बल
चलते हुए जाने कब
अपने पैरों पे खड़ा हो गया
देख रहा था
आपनी पारखी नज़रों से
तुम्हारी मायूसी को
कभी तुम्हारी
खिलखिलाती हँसी ने
सन्नाटे को भी
मुस्कराहटों के संग साझा किया था
....
सन्नाटे ने पहली बार
महसूस किया था
हँसी की मधुरता को
तभी तो आज फिर वह विचलित था
कौन है वो ऐसा
जिसने तुम्हें कैद कर लिया है
उदास चेहरे के पीछे
उसने देखा दीवारों को
जिनसे रौनक गायब थी
बिल्कुल तुम्हारे चेहरे की तरह
कितना फर्क होता है न
खिलखिलाती हँसी और फीकी हँसी में
एक बोझिल सी
एक अल्हड़ नदी सी ...
सन्नाटा घुटनों के बल
चलते हुए जाने कब
अपने पैरों पे खड़ा हो गया
देख रहा था
आपनी पारखी नज़रों से
तुम्हारी मायूसी को
कभी तुम्हारी
खिलखिलाती हँसी ने
सन्नाटे को भी
मुस्कराहटों के संग साझा किया था
....
सन्नाटे ने पहली बार
महसूस किया था
हँसी की मधुरता को
तभी तो आज फिर वह विचलित था
कौन है वो ऐसा
जिसने तुम्हें कैद कर लिया है
उदास चेहरे के पीछे
उसने देखा दीवारों को
जिनसे रौनक गायब थी
बिल्कुल तुम्हारे चेहरे की तरह
कितना फर्क होता है न
खिलखिलाती हँसी और फीकी हँसी में
एक बोझिल सी
एक अल्हड़ नदी सी ...
कितना फर्क होता है न
जवाब देंहटाएंखिलखिलाती हँसी और फीकी हँसी में
एक बोझिल सी
एक अल्हड़ नदी सी ... फर्क से परे जब दिनचर्या होती है तो घुटन होती है , पर कौन समझे , कैसे समझे - सबकी अपनी घुटन है
कभी तुम्हारी
जवाब देंहटाएंखिलखिलाती हँसी ने
सन्नाटे को भी
मुस्कराहटों के संग साझा किया था
....बहुत कोमल अहसास....लाज़वाब भावाभिव्यक्ति....
खिलखिलाती हंसी उन्मुक्त सभी चिंता फ़िकर से परे होती है। फ़ीकी हंसी औपचारिकता के लबादे से ढंकी-छुपी होती है।६
जवाब देंहटाएंबहुत गहराई से उपजी पंक्तियां...हँसी हँसी में फर्क होता है..
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर......
जवाब देंहटाएंगहन अभिव्यक्ति...
सस्नेह
वाह बहुत खूब
जवाब देंहटाएंwah sada ji lajbab prastuti lagi ....sadar abhar.
जवाब देंहटाएंखिलखिलाती हंसी और फीकी हंसी... बहुत फर्क होता है. सुन्दर रचना, बधाई.
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