बुधवार, 30 सितंबर 2009

दादी की यादें ...

पिंकी आज अपनी दीदा मां से जिद कर रही थी हां वह अपनी दादी को प्‍यार से दीदा ही कहा करती है .... मुझे कोई कहानी सुनाओ ना मैं और कहानी ... दादी ने हंसते हुये कहा, क्‍या कहा कहानी सुनेगी आज ? हां मैने टी.वी. पर देखा है दादी जो होती है उसे अच्‍छी-अच्‍छी कहानी आती है, पर तूने आज से पहले तो कभी कहानी सुनाने को नहीं कहा, तू वही अपने कार्टून देखती रहती है मिकी माउस, डोनल्‍ड डक, गूफी या फिर कम्‍प्‍यूटर पर गेम खेला करती है, पर आज तो मुझे कहानी सुननी ही है वर्ना मैं गुस्‍सा हो जाऊंगी, दीदा ने जल्‍दी से उसे मनाया नहीं-नहीं मेरी गुडि़या रानी मैं तुम्‍हें कैसे नाराज कर सकती हूं तुम्‍हीं तो मेरी हंसने और मुस्‍कराने की वजह हो वर्ना बाकी तो सब अपने-अपने काम पर लगे रहते हैं और मैं अपने कमरे में, अच्‍छा अब सुनाओ ना.... तुम्‍हे पता है बेटा जब यह टीवी शुरू-शुरू में आया था उसके पहले लोग रेडियो के दीवाने हुआ करते थे, ऑल इंडिया रेडियो, विविध भारती, सिबाका गीत माला जिसमें लोग गीतों से सजी हुई इस महफिल के साथ अमीन सयानी की बातों के दीवाने थे, कोई किसी को बात नहीं करने देता था आपस में बस सब ध्‍यान से कान लगाकर इनके गीतों और बातों का मजा लिया करते थे, उस समय तो बहुत ही कम गिने-चुने घरों में ही कलर टीवी हुआ करता था, बाकी सब जगह तो वही अपना ब्‍लैक एंड व्‍हाइट टीवी ही था और तब इतने चैनल भी नहीं हुआ करते थे सिर्फ एक दूरदर्शन ही था जो लोगों का मन बहलाता था, उसके भी सीमित कार्यक्रम हुआ करते थे, पर जब कोई नई चीज घर पर आती है तो उसका इतना उत्‍साह की पूछो ही मत, बच्‍चे तो बिल्‍कुल दीवाने हो गये थे टीवी के, तब चाहे शाम को कृषिदर्शन आता रहता था तो भी नजरें टीवी पर ही लगी रहा करती थीं, सप्‍ताह में एक या दो दिन ही चित्रहार के नाम से आधे घंटे का कार्यक्रम आता था फिल्‍मी गीतों का गीतों के शौकीन इस कार्यक्रम को छोड़ना नहीं चाहते थे रविवार को सुबह-सुबह रंगोली से दिन की शुरूआत किया करते थे, उस समय के लोकप्रिय कार्यक्रमों में थे बुनियाद, ये जो है जिन्‍दगी, पर सबसे ज्‍यादा टीवी बिके जब रामानन्‍द सागर की रामायण आना शुरू हुई पूछो ही मत सड़के सूनी हो जाया करती थीं पता चलता था कि टीवी पर रामायण आ रही है लोग तो बिल्‍कुल भक्तिमय हो गये थे, फिर बी.आर. चोपड़ा की महाभारत, ने एक इतिहास रच डाला लोग जल्‍दी-जल्‍दी अपने काम खत्‍म करके टी.वी. देखने के लिये समय से बैठना जो होता था, बड़ा मजा आता था जब सब इकट्ठा होकर कोई प्रोग्राम देखा करते थे, और अब घर-घर आ गये हैं कलर टीवी और उसके साथ ही केबिल कनेक्‍शन का जाल सा फैल गया इनके आने से तो थियेटर सूने हो चले हैं, थोड़ी बहुत जो कसर थी वह पूरी कर दी इन डिश टीवी वालों के साथ-साथ, सी.डी. व डी.वी.डी. प्‍लेयर ने, पिंकी ने दादी मां के गले में बाहें डालते हुये बड़ी मासूमियत से कहा अरे दीदा तुमने तो मुझे कहानी कहां टीवी का पूरा इतिहास ही सुना दिया तुम बहुत अच्‍छी हो, हां बेटा पर यह सब तो अब तो गुजरे जमाने की बातें हो गई हैं ।

शनिवार, 19 सितंबर 2009


सज गई माता की चौकी हर घर में,

नौ दिनों के लिये आ गई मां घर में ।

झिलमिलाती चूनर मां की लहराये जब,

जय माता दी के जयकारे हो रहे घर में ।

नवरात्रि के प्रवेश उत्‍सव पर सभी को शुभकामनायें

!! जय माता दी !!

ओम व्‍यास जी की कविता मां स्‍कूली पाठ्यक्रम में


उज्‍जैन के हास्‍य व्‍यंग्‍य के प्रसिद्ध कवि स्‍व. ओम व्‍यास की प्रमुख कविता मां को अगले शिक्षण सत्र से स्‍कूली पाठ्यक्रम में शामिल किया जाएगा यह समाचार आज पढ़कर मन में एक सुखद अनुभव हुआ मध्‍यप्रदेश शासन का यह प्रयास स्‍वागतयोग्‍य एवं सराहनीय कहा जाएगा मुख्‍यमंत्री जी का यह कथन की कविता मां समाज को एक नया संदेश देती है जिसे अगले शिक्षण सत्र से माघ्‍यमिक स्‍तर के पाठ्यक्रम में शामिल किये जाने और उनके जन्‍म दिन 25 नवम्‍बर को प्रतिवर्ष यहां हास्‍य व्‍यंग्‍य का भव्‍य कार्यक्रम सरकार की ओर से आयोजित किये जाने की भी घोषणा की यह उनके लिए सही रूप से एक विनम्र श्रद्धां‍जलि होगी ।

सोमवार, 7 सितंबर 2009

‘आंठवां फेरा’ .....

समाज का हर व्‍यक्ति जागरूक हो और समाज में फैली बुराईयों को जड़ से खत्‍म करने का संकल्‍प मन में हो तो कोई भी बाधा सामने नहीं आ सकती, एक बेहद अनुकरणीय उदाहण के रूप में सामने आई यह नई पहल उजागर हुई है हरियाणा से कन्‍या भ्रूण हत्‍या रोकने के लिए आंठवां फेरा हमारे समाज की पारंपरिक रचनात्‍मकता और विचारशीलता का अच्‍छा उदाहरण है । इस समस्‍या को प्राय: जागरूकता की कमी का नतीजा माना जाता रहा है और कानूनी कार्यवाई के जरिए हल करने की कोशिश की जाती रही है। विवाह के सात फेरों के साथ आंठवें फेरे के रूप में कन्‍या भ्रूण हत्‍या नहीं करने की शपथ दिलाकर पहली बार इसे दांपत्‍य के रीति रिवाजों से जोड़ा गया है । इसे आने वाले समय में यदि व्‍यापक रूप से अपनाया जाये तो एक जघन्‍य बुराई से मुक्ति पाई जा सकती है, बेटे एवं बेटी का समान रूप से पालन पोषण किया जा सकता है ।