
एक मौसम होता है
जो बदलता है हर ऋतु में
कभी पतझड़ कभी बसंत
कभी शरद कभी ग्रीष्म
हर मौसम के अनुकूल
हम खुद को ढालने
का प्रयास करते हैं ...
शायद हमें पता होता है
अब इसके बदलने का वक्त
आ गया है और हम
हो जाते हैं
उसके ही अनुकूल
लेकिन
जब मानव स्वभाव
बदलता है तो
सच कहूं
बड़ी पीड़ा होती है
नेकी का बदला बदी
प्रेम के बदले नफरत
खुशी के बदले गम
आहत कर जाते हैं
यदि इनके
बदलने का समय
भी नियत होता
तो शायद
हम यूं
आहत नहीं होते ...