बुधवार, 11 जुलाई 2012

चांद की लोरी से .....

दर्द की आंखों में सूनापन देखकर
अब जी घबराता नहीं
बस यह लगता था कि कहीं ये रो न दे
मेरी मायूसियों का चर्चा रहा
सारा दिन उसकी पलकों पे
कोई ख्‍वाब बह गया गया तो
कैसे संभाल पाएगी वह
....
कातिलों का शहर है  नींद
जाने कितने ही ख्‍वाबों का कत्‍ल होता है
हर रात यहां
गवाही देने के लिए कोई नहीं आता
तारे सो जाते हैं चांद की लोरी से
सूरज जब तक पहरे पे होता है
कोई खामोशी के लिहाफ़ से
बाहर झांकता नहीं ...

11 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर प्रस्तुति |
    बधाई स्वीकारें ||

    जवाब देंहटाएं
  2. सूरज जब तक पहरे पे होता है
    कोई खामोशी के लिहाफ़ से
    बाहर झांकता नहीं ...
    बहुत सुन्दर भाव...आभार

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह सदा जी...छोटा सन्देश,पर प्रभावी !

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुन्दर.....
    गहन भाव...............

    सस्नेह
    अनु

    जवाब देंहटाएं
  6. नींद में ख्वाबों के क़त्ल की गवाही कौन दे ...
    बेहतरीन !

    जवाब देंहटाएं
  7. कातिलों का शहर है नींद
    जाने कितने ही ख्‍वाबों का कत्‍ल होता है ... वाह

    जवाब देंहटाएं
  8. वाह ! सुंदर भावपूर्ण रचना !

    जवाब देंहटाएं