शनिवार, 23 जुलाई 2011

वो नाजुक धागा ....












वक्‍त को उसने बांधने की कोशिश की
कैसे ठहरता वो चलायमान
वो चला उसके साथ कभी भागा भी
छूट गया यूं ही एक दिन
रिश्‍तों के संग रिश्‍तों का
वो नाजुक धागा भी
कितना फकीर है वो जिसके पास
दौलत के खजाने भरपूर हैं
पर वक्‍त नहीं उसके पास
सुकून से खाने का
मजबूर है घड़ी की सुइयों के संग
अलसाई आंखों से जागने को
गंवाया उसने हर क्षण
जाने कितने सुखद अहसासों को
हेरफेर में रहा हर पल उसका
कैसे-कैसे बीच कयासों के .....!!!

शुक्रवार, 1 जुलाई 2011

वह बस शून्‍य ....

जिन्‍दगी गणित

परिस्थितियां सम- विषम

वह बस शून्‍य की तरह

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दुख का कारण

उसका निवारण

कारक मन

फिर भी निर्मल मन

को किसकी तलाश है ...