मंगलवार, 8 फ़रवरी 2011

दर्द से ...









टूटी खाट पर

जब भी मां

मैं तेरा बिस्‍तर लगाता हूं

मेरी पीठ

दर्द से दुहरी हो जाती है ।

मैं समेटता हूं

सपनों को बन्‍द करके आंखों को

जब भी

गरम आंसुओं की

कुछ बूंदे

तेरा दामन भिगो जाती हैं ।

एक सिहरन पूरे शरीर में होती है,

जब तेरी झुकी कमर

टेककर लाठी

मेरे लिये खेतों पे रोटी लाती है ।