लता जी : हां, इसके बाद पंडित जी से अगली मुलाकात मुम्बई में हुई जहां मैं एक चैरिटी के लिए गा रही थी । मैने आरजू फिल्म का गाना ‘अजी रूठ कर अब कहां’ खत्म किया था कि पंडित जी की फरमाइश आई ‘अरे लता, ऐ मेरे वतन के लोगों गाओ।’ मैने उनकी फरमाइश पूरी की। पंडित जी तब थोड़े अस्वस्थ्य चल रहे थे, इसलिए बहुत देर नहीं रूक सके, उनके जाते समय कामेडियन गोप के भाई रामकमलानी ने मुझसे आकर कहा, ‘लता पंडित जी तुम्हें बुला रहे हैं ।’ पंडित जी कार में अपनी बहन विजयलक्ष्मी के साथ थे, पंडित जी बोले – मैं बहुत प्रसन्न हूं, मैं तुम्हे गाते हुये सुनने ही आया था। कहकर वह चले गये, 27 मई 1964 को मैं कोल्हापुर में थी, तभी पता चला वे नहीं रहे, वह बहुत दु:खद दिन था।
नसरीन मुन्नी कबीर : भारतीय संगीत और राजनीति के महान लोग गुजर चुके हैं ....।
लता जी : मैं उन लोगों को सिर झुका कर नमन करती हूं, उनके गुजरने के बाद फिल्म संगीत के उस अच्छे वक्त की अब यादें हीं शेष हैं ।
अब आप पढ़ेगे एक खास बात और वह यह है . . .
चौंक गए !
क्या आप जानते हैं कि लता जी छुट्टियों का सर्वश्रेष्ठ आनन्द किस प्रकार लेती हैं ? जवाब है : लास वेगास (अमेरिका) में स्लॉट मशीनों पर रात भर दांव लगाना ।
नसरीन मुन्नी कबीर : उम्मीद करती हूं कि आप एस.डी. बर्मन के बारे में कुछ बताएंगी ?
लता जी : वे अतुलनीय संगीतकार थे, किन्तु काफी फिक्रमंद रहते थे । मुझे कभी-कभी सायनस की शिकायत रहती थी और रिकार्डिंग नहीं कर पाती थी, ऐसे में वे उत्तेजित होकर कहते थे, अरे लता नहीं करेगी तो भला मेरे गाने का क्या होगा ? वो खुद भी गजब के गायक थे, बंगाली लोक शैली में उनके गाए गानों का शायद ही कोई जवाब हो, अगर उनके हिसाब से गाना ठीक बने तो पीठ पर एक धौल का आशीर्वाद पक्का था। वे पान के बहुत शौकीन थे, यदि आपने उन्हें खुश कर लिया तो उनकी ओर पान की पेशगी पक्की। बाकी किसी की क्या मजाल कि उनसे पान खाने को पा जाये।
नसरीन मुन्नी कबीर : और किशोरकुमार क्या वे वाकई एक असामान्य व्यक्तित्व के धनी थे
लता जी : उनके बारे में कहां से शुरू करूं, वे मनमौजी व्यक्ति थे और जब हम स्टूडियो में गाना गा रहे होते तो कुछ भी हो न हो, पर हंसी का दौर जारी रहता था। वे स्टूडियो में कभी भी नाचने लगते तो कभी मुंह बनाकर गाना नहीं गाने देते।
उनसे पहली मुलाकात भी बहुत दिलचस्प थी। मैं खेमचन्द प्रकाश जी के साथ काम कर रही थी, उस मैं ग्रांट रोड मलाड के लिए ट्रेन का सहारा लेती थीा एक दिन महालक्ष्मी स्टेशन से किशोर दा भी मेरे कंपार्टमेंट में चढ़े वे कुर्ता, पजामा पहने और गले में स्कार्फ लपेटे थे, मेरे ही साथ गाड़ी से उतरे और तांगा किया। मैं घबरा गई, जब वे स्टूडियो तक पीछे चले आए। मैं भागकर खेमचन्द्र जी के पास पहुंची और बोली, अंकल, वो लड़का लगातार मेरा पीछा कर रहा है। तब खेमचन्द्र जी ने बताया, ‘अरे यह तो किशोर है। अशोक कुमार जी का भाई।’ फिर हम एक दूसरे से परिचित हुये। उसी दिन हमने किशोर के साथ फिल्म जिद्दी का ये ‘ये कौन आया रे करके सोलह सिंगार’ गाया, प्लेबैक सिंगर के रूप में किशोर की यह पहली फिल्म थी।
नसरीन मुन्नी कबीर : इस फिल्म ने देवानन्द को भी स्टार बना दिया। खेमचन्द्र प्रकाश जी के मशहूर गीत ‘आयेगा आने वाला’ के बारे में आप क्या कहती हैं ? इसके बारे में कुछ याद आता है ?
लता जी: ‘आयेगा आने वाला’ गीत के समय रिकार्डिंग तकनीक इतनी विकसित नहीं थी, इस गीत के लिए माइक को कमरे के बीच में रखा गया था और मुखड़ा ‘खामोश है जमाना’ को गाते हुये मैं माइक तक बढ़ती थी और माइक तक पहुंच कर ‘आयेगा आने वाला’ की पंक्ति गाती थीा कई रिटेक हुए, तब कहीं जाकर यह गीत रिकार्ड हो सका।
आभार ।
पुस्तक का नाम : लता मंगेशकर . . . इन हर ओन वॉयस, कनवर्सेशन विद नसरीन मुन्नी कबीर प्रकाशक : नियोगी बुक्स