मंगलवार, 15 मार्च 2011

एक दु:खी आदमी ..... (लघुकथा)
























एक आदमी था . नाम कुछ भी रख दो, क्या फर्क पड़ता है ! हर दो कदम पर ऐसा आदमी दिख जायेगा .... हाँ तो एक आदमी था , वह
हमेशा दुखी रहता था .खुद को असहाय समझता ... सब उसे खुश रखने का प्रयास करते पर उसे कोई न कोई शिकायत हो ही जाती और
शिकायत भी रबर जैसी खींचती जाती ! अपने दुःख का इज़हार करने की खातिर वह अजनबियों से अपना दर्द सुनाता . उसके अपने परेशान
होते, दुखी होते पर उसे इसकी परवाह नहीं थी . अपनी सोच के आगे उसे हर बात बौनी और उबाऊ लगती . किसी के साथ कोई बड़ी बात
होती तो वह मुंह बिचका देता या बात को आई गई करने की सलाह देता पर खुद वह किसी बात को आई गई नहीं करता था . परिणामतः वह
हमेशा बीमार रहता , अन्दर की कुधन उसे चैन से सोने नहीं देती और वह शून्य में बडबडाता रहता .
प्यार करनेवाले उकताने लगे , उसे आते देख वहाँ से हट जाते ... वह उनको ही याद दिलाता कि पहले तो ऐसा नहीं था , पर वह खुद इस बात
को कभी नहीं समझ सका और जितना कुछ भगवान् ने उसे दिया था , वह सब ख़त्म हो गया !!!

' कमी निकालने से पहले खुद का भी आकलन ज़रूरी है '