कुछ विरोधी स्वर
मन में अपनी बातों की
पकड़ मजबूत रखते हैं
कोई कितना भी
सच कहे
उसे यह ना मानने की
जब शपथ ले लेते हैं
तो फिर
नहीं मानते हैं ...
कुछ समझाइशों के बादल
आंखों में तैरते जरूर हैं
लेकिन उन्हें
बरसने के लिए
वक्त पर ही निर्भर
कर दिया जाता है ...
एक शोर है आस-पास
पर गुमनाम सा वह
कौन है जिसको पुकार रहा है यह शोर ...
उधार की जिन्दगी से अच्छा है
निज़ता का बोध
एक मील का पत्थर
उधार की जिन्दगी से अच्छा है
जवाब देंहटाएंनिज़ता का बोध
एक मील का पत्थर... बेशक
बढियां भाव |
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें ||
निजता का बोध हमेशा ही होना चाहिए।
जवाब देंहटाएंउधार की ज़िन्दगी किसी काम की नहीं।
जवाब देंहटाएंबोध भरी कविता...
जवाब देंहटाएंकुछ विरोधी स्वर
जवाब देंहटाएंमन में अपनी बातों की
पकड़ मजबूत रखते हैं
कोई कितना भी
सच कहे
उसे यह ना मानने की
जब शपथ ले लेते हैं
तो फिर
नहीं मानते हैं ...
इसमें कोई बुराई भी नहीं है की पकड़ मजबूत हो पर ख्याल ये होना चाहिए की सच्ची बातों पे मजबूती हो ...
हर एक पंक्तियाँ अद्भुत सुन्दर है जिसे आपने बेहद खूबसूरती से प्रस्तुत किया है! सदा दी
जवाब देंहटाएंsundar prastuti
जवाब देंहटाएंकल 21/05/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
बेहद खूबसूरत भाव .....
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना...
कुछ समझाइशों के बादल
जवाब देंहटाएंआंखों में तैरते जरूर हैं
लेकिन उन्हें
बरसने के लिए
वक्त पर ही निर्भर
कर दिया जाता है ... kya baat hai sada ji....shabdon ke saath bahut acchha pryog kiya hai aapne
उधार की जिन्दगी से अच्छा है
जवाब देंहटाएंनिज़ता का बोध
एक मील का पत्थर...
खूबसूरत रचना...
बहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
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