उजड़ जाना ... या वीरान होना
इससे तुमने क्या सोचा
जरूर मैं किसी गुलशन की बात कर रही हूँ
नहीं .. नहीं ... वहां तो बहार
प्रकृति ले ही आती है बसंत
खिल उठते हैं फूल
झूम उठती हैं टहनियॉं
धरती को चूमने के लिए
फिज़ाओं में घुल जाती है खुश्बू
बागवां के चेहरे पे चमक अनोखी होती है
इन दिनों ... पर
मेरी आंखों में
वीरानी तो उस घर की है
जहां के बच्चे परदेस में बस गए
घर की सूनी दहलीज़ पे
ठहरती नज़रों को बस डाकिये का इन्तज़ार रहता
शायद भूले से बच्चो ने लिख भेजा हो कुछ
मां को नहीं आता मैसेज लिखना
नहीं कर पाती ई-मेल बच्चों को
ये सुविधाएं होकर भी न होने जैसे होती हैं
उसके लिए तो ...
मोबाइल पर ... जब घंटी बजती है तो
कई बार हरे की जगह वो लाल बटन दबा देती
और उसके बजने की आवाज भी बंद हो जाती
मन ही मन अपनी इस हरकत पर
खीझ उठती ...माँ
हर तरफ उदासी ही दिखती है उसे
दीवारों के रंग धुंधले नज़र आते हैं या उनमें भी
आंखों की उदासी उतर आई है
समझ नही पाती ....
भावुक कर गयी आपकी अभिव्यक्ति ...
जवाब देंहटाएंअब जब तक समझ आएगी, बहुत देर हो चुकी होगी
जवाब देंहटाएं.मन में उतर जाती हैं आपकी कवितायें...
जवाब देंहटाएंThe old age man
जवाब देंहटाएंRemembers
The child hood
Feels little helpless
Worried about
The time to come
Further you go
One looks frail and tired
As helpless as a child
Prays to god
For a peaceful end
23-02-2012
232-143-02-12
A verse from my new poem in english"Shades of life"
बहुत मर्मस्पर्शी रचना...अंतस को छू गयी
जवाब देंहटाएंमेरी आंखों में
जवाब देंहटाएंवीरानी तो उस घर की है
जहां के बच्चे परदेस में बस गए
घर की सूनी दहलीज़ पे
हार्दिक अभिवादन -बहुत ही सुन्दर जज्बात
.... प्रशंसनीय रचना - बधाई
आखिर माँ सीख ही लेगी ई मेल करना और मोबाइल का सही बटन दबाना ॥ :)
जवाब देंहटाएंभावमयी रचना
अब हमें अपनों से मिलने-बतियाने का समय-प्रबंधन भी करना नहीं आता...!
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना !
bahut samvedansheel kavita
जवाब देंहटाएंbhawbhini......
जवाब देंहटाएंकल 01/05/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल (विभा रानी श्रीवास्तव जी की प्रस्तुति में) पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
हृदयस्पर्शी ,संवेदनशील अभिव्यक्ति.....
जवाब देंहटाएंmarmsparshi rachna jo dil ko chu gayi
जवाब देंहटाएंक्या कहूँ बस निशब्द हूँ....
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