गुरुवार, 10 जुलाई 2014

जीत की सीढि़यों पर....

तुम्‍हारी मुस्‍कराहटों पर,
अक्‍़सर मैं दूसरों की
खुशियाँ देखती हूँ जब
तो सोचती हूँ
ऐसा करना बस
तुम्‍हारे लिये ही संभव था,
कहा था तुमने
असंभव शब्‍द
सिर्फ डिक्‍शनरी में होता है
हक़ीकत में तो हम
लड़ना जानते हैं
एक कोशिश करते हुये
जिंदगी को पराज़य से
कोसों दूर कर
जीत की सीढि़यों पर
बस चढ़ना औ’ चढ़ना जानते हैं

... 

20 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया प्रस्तुति-
    आभार आपका-

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  2. विजय उसी की होती है जो हिम्मत से आगे बढ़ता है..सुंदर कविता !

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  3. दूसरों को खुशी देने में बहुत खुशी है।

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  5. सादर नमस्कार !
    आपकी लिखी रचना "साप्ताहिक मुखरित मौन में" शनिवार 22 जून 2019 को साझा की गई है......... "साप्ताहिक मुखरित मौन" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  6. आशा की डोर थामे हौसले की उड़ान।
    बहुत सुंदर रचना।

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  7. इतनी अच्छी कविता को पढ़ने में कितनी साल लगा दिए मैंने । बहुत प्रेरणादायी है यह । बहुत उत्साहवर्धक है यह । जैसे दिल से लिखी गई हो किसी के लिए ।

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  8. जय मां हाटेशवरी.......
    आपने लिखा....
    हमने पढ़ा......
    हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें.....
    इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना.......
    दिनांक 25/08/2021 को.....
    पांच लिंकों का आनंद पर.....
    लिंक की जा रही है......
    आप भी इस चर्चा में......
    सादर आमंतरित है.....
    धन्यवाद।

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  9. दूसरों की खुशियों में मुस्कराने वालों के लिए कुछ भी असंभव नहीं
    लाजवाब सृजन।

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