गुरुवार, 28 मई 2009

छोटी उम्र में बड़े होते बच्‍चे . .

 

 

हम बदल रहे हैं, बदलना पड़ रहा है, वक्‍त के साथ चलना भी जरूरी है लेकिन इस तरह ना चला जाय कि हमारा आज जो खुशियों से भरपूर है वह दुख या किसी अनजानी पीड़ा में बदल जाये । जी हां बात हो रही है आज के बच्‍चों की जिन्‍हें जल्‍दी है वक्‍त के पहले बड़े होने की . . . और हम उनकी इच्‍छाओं को मारना नहीं चाहते उन्‍हें वह सभी सुख सुविधायें देना चाहते हैं जिनसे शायद हम स्‍वयं अछूते रहें हों, या तब यह साधन नहीं थे जिनका लाभ हम नहीं उठा पाये . . .  आज जब युवा होते बच्‍चों की फरमाइश होती है कि मुझे ये गाड़ी ले दीजिये या फलां मोबाइल बहुत अच्‍छा है तो हम चाह कर भी उनकी वह छोटी-छोटी खुशियां छीन नहीं पाते, भरसक उन्‍हें पूरा करने की कोशिश करते हैं लेकिन इन सब बातों से ही तो छिन रहा है उनका बचपन, केबल टीवी कम्‍प्‍यूटर, वीडियो गेम, के साथ- साथ बीत रहा है. . .  किशोरावस्‍था की दहलीज पर कदम रखते बच्‍चे जिन्‍हें पसन्‍द है तो आधुनिकता भरे मोबाइल नई नई गाडि़यां यह जीवन शैली को कहां से कहां ले जा रही हैं।

      आज कुछ ही बच्‍चे ऐसे होंगे जो शाम के वक्‍त बाहर खेलने जाते होंगे, बाहर खेलने की बजाय उनकी दिलचस्‍पी कम्‍प्‍यूटर पर गेम खेलने में रहती है, खुली हवा का आनन्‍द, अपने हमउम्र बच्‍चों के साथ खेलने में जो आपस में अपनापन होता था, उसकी कमी सी महसूस होती है ।

      बच्‍चों के द्वारा तेज गति से जिसतरह दुपहिया वाहन दौड़ाये जाते हैं, माता-पिता के मना करने पर भी वह उस समझाइश को नजरअन्‍दाज कर देते हैं, एक्‍सीलेटर की स्‍पीड की तरह वह अपने जीवन में भी तेज उड़ान चाहते हैं, उड़ान हर कोई चाहता है वक्‍त कीमती है लेकिन जीवन से ज्‍यादा नहीं, जब हम ही नहीं होंगे तो उन कामों को कौन पूरा करेगा . . .  जिन्‍हें पूरा करने के लिये हम हवा से बातें करते हैं, तेज गति से वाहन चलाते हुये, लेकिन अपने जीवन की इतिश्री करके नहीं, या अपंग होकर दूसरे पर बोझ डालना अपने जीवन में आने वाली खुशियों को खोकर नहीं . . . आये दिन ही हमें ऐसी किसी घटना का सामना करना पड़ता है जिनसे दिल दहल जाता है . . .  उन माता-पिता पर क्‍या बीतती है जब उनके कलेजे का टुकड़ा उनके सामने ही अपाहिज हो जाता है, और वो बुरे वक्‍त को कोसते हैं कि जब उनका बच्‍चा घर से निकला था, जाता तो वह रोज ही है परन्‍तु दुर्घटनाएं जीवन की दिशा बदल देती हैं . . . एक हंसता खेलता परिवार गम के साये में जीवन व्‍यतीत करने को मजबूर हो जाता है।

      बच्‍चों को अच्‍छी शिक्षा -‍दीक्षा के साथ ही, छोटे-छोटे नियम कायदों का पालन करने एवं बड़ों की समझाइश पर ध्‍यान देने की जरूरत है ताकि वह अपने साथ-साथ अपने परिवार की खुशियां भी बरकरार रख सकें । 

5 टिप्‍पणियां:

  1. बच्चों को अनुशासित जीवन सिखाने की जिम्मेदारी माँ बाप पर है-आपसे सहमत.

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  2. बिलकुल सही कहा है आपने.एक और बात भी है. अच्छे नंबर से दसवीं पास करने के लिए टूशन लगाया जाता है. पूरा समय पढाई में. दसवीं पास होने के बाद किसी अछे कोचिंग संस्था में डाल देते हैं ताकि आइ आइ टी की पअतीक्षा में सफल हो. फिर पढाई पढाई पढाई. बचपन तो छीन लिया.

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  3. आज के युग में अपने खुद के गे बढने ... या अपने बच्‍चों को आगे ले जाने की मां बाप की महत्‍वाकांक्षा ने .. बच्‍चों से उनका बचपन तो छीन ही लिया है .. उस कमी को पूरा करने के लिए कुछ क्षतिपूर्ति तो करनी ही पडती है।

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  4. अनुशासन बहुत जरूरी होता है

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