शनिवार, 23 मई 2009

सच होता सा ख्‍वाब कोई . . .

सपने देखना किसे अच्‍छा नहीं लगता, सबकी आंखों में कोई न कोई सपना बसा होता है, हां ये बात जरूर है कि सबके सपने पूरे नहीं हो पाते लेकिन फिर भी लोग सपने देखना बन्‍द तो नहीं कर देते, कुछ लोगों को ऐसा जुनून होता है कि वे दुगनी गति से अपने सपनों को पूरा करने में लग जाते हैं इसी तरह एक सपना देखा था श्‍यामली ने नाम के अनुरूप ही सांवला रंग, तीखे नैन-नक्‍श चंचलता भी भरपूर थी उसमें छोटे से गांव की रहने वाली इस लड़की का सपना था तो अच्‍छे-अच्‍छे कपड़े पहनना. . . अच्‍छा रहन-सहन, और खाने-पीने की बेहद शौकीन, लेकिन उसे अपनी इस इच्‍छा को मन में ही दबाकर रखना पड़ता था, किसान पिता की सबसे बड़ी संतान थी वह और उसके बाद उसकी तीन बहने दो भाई, माता-पिता के लाख चाहने पर भी वह सब बच्‍चों की इच्‍छा पूरी नहीं कर पाते थे, हाई स्‍कूल तक की पढ़ाई करने के बाद वह अपने मामा के पास शहर आ गई और आस पड़ोस के बच्‍चों को टयूशन पढ़ाकर खुद की पढ़ाई का खर्च निकालती थी ।

उसके घर के पास ही एक पी.सी.ओ. था जहां वह कभी-कभार फोन करने के लिये जाया करती थी, वहां ही उसकी मुलाकात अजय से हुई गोरा रंग, लंबा कद, बेहद आकर्षक व्‍यक्तित्‍व का स्‍वामी था अजय, आते-जाते . . .मिलते मिलाते कब उनकी मुहब्‍बत परवान चढ़ गई पता ही ना चला, दोनो को अब एक- दूसरे से मिले बिना किसी काम में मन ही ना लगता, इश्‍क कम्‍बख्‍त चीज ही ऐसी है कि जितना छुपाओ, उतना ही लोगों को खबर होती है वही हाल इनकी मुहब्‍बत का भी हुआ . . . मामा को पता चला तो पहले तो वह बेहद नाराज हुये जैसा कि वह श्‍यामली को बेहद प्‍यार करते थे फिर उन्‍होंने उसके माता-पिता को मनाया और दोनों की शादी करा दी, अब खुशियां उनके जीवन में प्रवेश कर चुकी थीं, किसी को उसका मनचाहा प्‍यार मिल जाये इससे बड़ी खुशी तो कोई हो नहीं सकती ऐसा ही इन दोनों के साथ भी हुआ, अजय के परिवार में उसकी मां और छोटे भाई-बहन थे जिनकी जिम्‍मेदारी भी अजय को उठानी थी करीब छह माह बाद हार्ट अटैक में अजय की मां चल बसी, और अजय अपने छोटे भाई-बहन की जिम्‍मेदारियों को लेकर काफी सचेत हो चुका था ।

वह दिन रात इसी कोशिश में लगा रहता था कि कहां से उसकी कमाई का साधन विस्तृत हो वह कुछ दिनों से इसी उधेड़बुन में था तभी उसके एक मित्र ने उसे अपनी कम्‍पनी में रिकवरी आफिसर के तौर पर काम करने को कहा, पर यह काम उसे तनख्‍वाह के रूप में नहीं बल्कि कमीशन के रूप में मिला था, लेकिन उसने मौका हांथ से नहीं जाने दिया और लग गया उस काम में तो फिर तो उसने ना रात देखा ना दिन हर समय उसे काम ही काम नजर आता था, उसके काम का इतना अच्‍छा रिजल्‍ट देख कम्‍पनी वाले भी खुश . . .  फिर तो उसने दूसरे आफिसों में भी सम्‍पर्क करना शुरू कर दिया, और धन की कमी तो होनी ही नहीं थी, जो व्‍यक्ति ना दिन देखता था ना रात, श्‍यामली भी उसका भरपूर सहयोग करती, कभी किसी तरह की उसे शिकायत ना होती कि वह उसे वक्‍त दे पाता है या नहीं दे पाता, घर को उसने सम्‍हाला तो जी तोड़ मेहनत करने की अजय ने ठानी चार-पांच सालों में उनका अपने घर का सपना भी पूरा हुआ तो ऐसा कोई सामान ना था जो सम्‍पन्‍न व्‍यक्ति के पास होना चाहिए, और उनके पास नहीं हो, संभलने के साथ ही पहले तो अजय ने अपनी छोटी बहन की धूमधाम से शादी की और अब उनके परिवार में भी दो बेटे थे छोटा भाई बी.कॉम कर रहा था, और सी.ए. बनना चाहता था।

       अब अंजय देश की राजधानी दिल्‍ली में शिफ्ट हो चुका था क्‍योंकि चुनिन्‍दा कम्‍पनियों का काम उसके ही पास तो था, पर उसके मेहनत करने का अंदाज आज भी वही था, काम में लगता तो सब कुछ भूल जाता था, और श्‍यामली भी उसके कंधे से कंधा मिलाकर चल रही थी हर छोटी बड़ी चीज का ध्‍यान रखती थी कि किसकी क्‍या जरूरत है । उसकी सालों से जो ख्‍वाहिश थी वह आज पूरी होती सी महसूस हो रही थी  . . . ।

 

 

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