शुक्रवार, 27 जनवरी 2012
मंगलवार, 17 जनवरी 2012
कुछ कहना शेष था ....
यह जीवन का कौन सा
अध्याय है
समझ नहीं पा रही हूं
कल जब से
मैने उस वृद्धा को
कचरे के ढेर पर बैठकर
रोटी के टुकड़ो को
साफ करने के बाद
आपने आंचल में
बांधते देखा
ना चाहते हुए भी
आंख नम हो गई .....
आवाज देकर पुकारने में
वह हड़बड़ा कर उठी
और तेज कदमों से
अंजान सी गली में
अदृश्य हो गई
उसके जाने के बाद भी
वह मुझे दिखाई देती रही
पूछता रहा मौन उसका
ये कौन सा अध्याय है
जिसमें अपनी ही
लाचारी के बारे में
कुछ कहना शेष था ....
सोमवार, 2 जनवरी 2012
शनिवार, 3 दिसंबर 2011
स्माइली की भाषा :)
हर पीढ़ी अपनी भाषा गढ़ती है, अपनी बातों को अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए हर पीढ़ी ने नये-नये तरीके ईज़ाद किए, कभी कबूतर तो कभी कोई खा़दिम जरिया होता था इनके संदेशों के आदान-प्रदान का फिर पोस्टकार्ड व अंतर्देशीय में रूचि बढ़ी इनके साथ-साथ भाये ग्रीटिंग कार्ड व ई-कार्डस भी, लेकिन परिवर्तन की बयार अभी थमी नहीं है क्योंकि आ चुके हैं आज की युवा पीढ़ी के स्माइली :) इनका परिचय आप सभी से हो ही चुका होगा देर-सेवर ही सही समझा हो आपने लेकिन एक सहज़ मुस्कान बिखेरते कब ये आपकी कम्प्यूटर स्क्रीन पर
या मोबाइल के इनबॉक्स में प्रकट हो जाएं कुछ कहा नहीं जा सकता क्योंकि इस यंत्र का खुशनुमा चेहरा या दुखी
चेहरा अपनी कहानी सुना जाए ...या फिर दे जाए आपके चेहरे पर एक मुस्कान सुबह-सुबह ... स्माइली की दुनिया अनोखी है भावनाओं के समंदर से निकले हर मोती की अपनी अलग ही आभा है जहां शब्द खो जाते हैं दुख के भंवर में वहां :-C आपकी भावनाओं को ये कह जाता है कुछ इस तरह से इसका व्याकरण नई पीढ़ी को तो खूब भाता है और वो इनके अर्थों से बखूबी वाकिफ़ भी हैं क्योकि रफ्तार और तेजी की अभ्यस्त युवा पीढ़ी को स्माइली में समय की बचत दिखाई देती है सच भी है तो आइए हम भी चलते हैं जहां चेहरा एक ही है पर उसके भाव अनेक हैं ....
:-) .......... खुश
:-D ............बेहद खुश
:-( ............. उदास
:-C ............. बेहद उदास
:-P ............. जीभ चिढ़ाना
l-O ............. जम्हाई
:-/ ............. शक्की
l:-( ............. नाराज
8-O ............. स्तब्ध
<:-l ............. मूर्ख
%-( ............. हक्का-बक्का
शनिवार, 26 नवंबर 2011
ये खजाना तो ....!!!
उसकी आंखो से दर्द
बयां होता था
पर फिर भी जाने कैसे
लबों पे उसके
तबस्सुम खेला करती
मैं हैरां होती
उसकी संजीदगी पे
वो मुझको समझाकर कहती
देख हंसी सब बांट लेते हैं
आंसू बांटना जरा
मुश्किल होता है
तूने सुना है न
ये कीमती होते हैं
फिर इसे कैसे बांटेगा कोई
ये खजाना तो बस
चुपचाप चोरी छिपे ही
लुटाना होता है ....!!!
पर फिर भी जाने कैसे
लबों पे उसके
तबस्सुम खेला करती
मैं हैरां होती
उसकी संजीदगी पे
वो मुझको समझाकर कहती
देख हंसी सब बांट लेते हैं
आंसू बांटना जरा
मुश्किल होता है
तूने सुना है न
ये कीमती होते हैं
फिर इसे कैसे बांटेगा कोई
ये खजाना तो बस
चुपचाप चोरी छिपे ही
लुटाना होता है ....!!!
बुधवार, 9 नवंबर 2011
शुक्रवार, 21 अक्टूबर 2011
मौन होकर भी ....
खामोशी के साये
मुझे चारों ओर से
घेर लेते हैं जब
तो मेरी नजरें
तुम्हें खोजती हैं
मेरा मौन
तुम्हें पुकारता है
मेरा अन्तर्मन
रूदन करता है
उसकी सिसकियां
मुझे द्रवित करती हैं
तब लगता है
मैं तुम्हारा नाम लेकर
तुम्हें आवाज दूं
मेरी उस आवाज से
तुम्हें यकीन हो जाए
मेरी तड़प का
जो मौन होकर भी
बहुत कुछ कहती है .... !!!!
मुझे चारों ओर से
घेर लेते हैं जब
तो मेरी नजरें
तुम्हें खोजती हैं
मेरा मौन
तुम्हें पुकारता है
मेरा अन्तर्मन
रूदन करता है
उसकी सिसकियां
मुझे द्रवित करती हैं
तब लगता है
मैं तुम्हारा नाम लेकर
तुम्हें आवाज दूं
मेरी उस आवाज से
तुम्हें यकीन हो जाए
मेरी तड़प का
जो मौन होकर भी
बहुत कुछ कहती है .... !!!!
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