मंगलवार, 4 अक्टूबर 2011

बिखर जाता दर्द ...











दर्द को छूकर
वह सहलाती जब भी
कोरों से बहते आंसू
वह हथेली में
समेट लेती जब
बिखर जाता दर्द
उसके आंचल में
सिमटने के लिए
वह एक खोखली हंसी
ले आती लबों पर
कहती क्‍यूं
इतना स्‍नेह मुझसे
जो मेरा दामन
छोड़ा नहीं जाता
मेरे धैर्य की
कितनी परीक्षा
लेनी है तुम्‍हें ....
अचानक एक टीस सी उठती
लगता सब कुछ खत्‍म
फिर वह संयत कर खुद को
कह उठती
अच्‍छा चलो मैं अब
तुम्‍हारे संग चलूंगी
तुम्‍हारे साथ
जीवन के नये रंग
गीतों में उतारूंगी
कुछ तुम्‍हारी बातें होंगी
कुछ मेरे अनुभव
तुम्‍हें अपने अंतस में
छुपा लेने के ...!!!

शनिवार, 27 अगस्त 2011

पूरी हथेली ... !!!!












(1)
अक्षर जैसे एक अकेली उंगली
शब् जैसे कोई
पूरी हथेली ... !
शब् का अर्थ
वज़न अपनी बात का .... !!
पंक्ति हो जाती यूं
जैसे धरती पे साया आकाश का ......!!!!

(2)
कितना भी
तन तेरा दुर्बल हो,
जीते जी
मन की हार नहीं होने देना,
दुर्गम हो पथ कितना भी
आगे बढ़ना ...
मन को
थकन का भार नहीं होने देना ....

मंगलवार, 9 अगस्त 2011

आज भी कैद हैं ...!!!








मुल्‍क को आजाद हुये

बरसों बीत गये

पर हम अपने मन

से आज भी कैद हैं ...!

कभी सरहद के

रस्‍ते

कभी मन में

पनपती बदले की भावना....!!

दुश्‍मनी निभानी हो तो

भूल जाओ तुम

दिल से

प्‍यार रिश्‍ते और

अहसासों को ....!!!

शनिवार, 23 जुलाई 2011

वो नाजुक धागा ....












वक्‍त को उसने बांधने की कोशिश की
कैसे ठहरता वो चलायमान
वो चला उसके साथ कभी भागा भी
छूट गया यूं ही एक दिन
रिश्‍तों के संग रिश्‍तों का
वो नाजुक धागा भी
कितना फकीर है वो जिसके पास
दौलत के खजाने भरपूर हैं
पर वक्‍त नहीं उसके पास
सुकून से खाने का
मजबूर है घड़ी की सुइयों के संग
अलसाई आंखों से जागने को
गंवाया उसने हर क्षण
जाने कितने सुखद अहसासों को
हेरफेर में रहा हर पल उसका
कैसे-कैसे बीच कयासों के .....!!!

शुक्रवार, 1 जुलाई 2011

वह बस शून्‍य ....

जिन्‍दगी गणित

परिस्थितियां सम- विषम

वह बस शून्‍य की तरह

.................................

दुख का कारण

उसका निवारण

कारक मन

फिर भी निर्मल मन

को किसकी तलाश है ...


मंगलवार, 31 मई 2011

आहत नहीं होते ...













एक
मौसम होता है
जो बदलता है हर ऋतु में
कभी पतझड़ कभी बसंत
कभी शरद कभी ग्रीष्‍म
हर मौसम के अनुकूल
हम खुद को ढालने
का प्रयास करते हैं ...
शायद हमें पता होता है
अब इसके बदलने का वक्‍त
आ गया है और हम
हो जाते हैं
उसके ही अनुकूल
लेकिन
जब मानव स्‍वभाव
बदलता है तो
सच कहूं
बड़ी पीड़ा होती है
नेकी का बदला बदी
प्रेम के बदले नफरत
खुशी के बदले गम
आहत कर जाते हैं
यदि इनके
बदलने का समय
भी नियत होता
तो शायद
हम यूं
आहत नहीं होते ...

सोमवार, 16 मई 2011

जंग का ऐलान ....













जीवन
अमृत
हो जाएगा तुम्‍हारा
विष का जब भी
तुम पान करोगे ।
लड़ोगे सत्‍य की लड़ाई
जब भी कभी
झ़ठ से तुम
जंग का ऐलान करोगे ।
एक मुस्‍कराहट तुम्‍हारी
रोक लेगी बहते आंसुओ को
इनसे जब भी
तुम हंसकर पहचान करोगे ।