
दर्द को छूकर
वह सहलाती जब भी
कोरों से बहते आंसू
वह हथेली में
समेट लेती जब
बिखर जाता दर्द
उसके आंचल में
सिमटने के लिए
वह एक खोखली हंसी
ले आती लबों पर
कहती क्यूं
इतना स्नेह मुझसे
जो मेरा दामन
छोड़ा नहीं जाता
मेरे धैर्य की
कितनी परीक्षा
लेनी है तुम्हें ....
अचानक एक टीस सी उठती
लगता सब कुछ खत्म
फिर वह संयत कर खुद को
कह उठती
अच्छा चलो मैं अब
तुम्हारे संग चलूंगी
तुम्हारे साथ
जीवन के नये रंग
गीतों में उतारूंगी
कुछ तुम्हारी बातें होंगी
कुछ मेरे अनुभव
तुम्हें अपने अंतस में
छुपा लेने के ...!!!