सोमवार, 5 जुलाई 2010

दुआओं की हसरत ....




इल्‍जाम दिये हैं अपनों ने कुछ इस तरह,

उपहार दिये जाते हैं हंस के जिस तरह ।

दुआओं की हसरत नहीं थी कभी भी मुझे,

सोचा न था मिलेंगी बद् दुआयें इस तरह ।

9 टिप्‍पणियां:

  1. इसीलिए तो कहते हैं बिन मांगे मोती मिलें,मांगे मिले न भीख।

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  2. बहुत सुंदर.... लास्ट लाइंज़ बहुत अच्छी लगीं....

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  3. आप सबके आने और उत्‍साहवर्धन करने का आभार ।

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  4. ये इल्जाम और बददुआएं संभाल कर रखियेगा .....वक़्त बदलते देर नहीं लगती ......!!

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  5. बहुत अच्छी प्रस्तुति।
    राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।

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  6. bahut khub........
    agar uphaar ke badle urdu me tohfa hota to shayad aur accha lagta...

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