दर्द की आंखों में सूनापन देखकर
अब जी घबराता नहीं
बस यह लगता था कि कहीं ये रो न दे
मेरी मायूसियों का चर्चा रहा
सारा दिन उसकी पलकों पे
कोई ख्वाब बह गया गया तो
कैसे संभाल पाएगी वह
....
कातिलों का शहर है नींद
जाने कितने ही ख्वाबों का कत्ल होता है
हर रात यहां
गवाही देने के लिए कोई नहीं आता
तारे सो जाते हैं चांद की लोरी से
सूरज जब तक पहरे पे होता है
कोई खामोशी के लिहाफ़ से
बाहर झांकता नहीं ...
अब जी घबराता नहीं
बस यह लगता था कि कहीं ये रो न दे
मेरी मायूसियों का चर्चा रहा
सारा दिन उसकी पलकों पे
कोई ख्वाब बह गया गया तो
कैसे संभाल पाएगी वह
....
कातिलों का शहर है नींद
जाने कितने ही ख्वाबों का कत्ल होता है
हर रात यहां
गवाही देने के लिए कोई नहीं आता
तारे सो जाते हैं चांद की लोरी से
सूरज जब तक पहरे पे होता है
कोई खामोशी के लिहाफ़ से
बाहर झांकता नहीं ...
सुन्दर प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंबधाई स्वीकारें ||
सूरज जब तक पहरे पे होता है
जवाब देंहटाएंकोई खामोशी के लिहाफ़ से
बाहर झांकता नहीं ...
बहुत सुन्दर भाव...आभार
बहुत गहरे भाव के साथ... सुंदर रचना..
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना ..
जवाब देंहटाएंवाह सदा जी...छोटा सन्देश,पर प्रभावी !
जवाब देंहटाएंबहुत खुबसूरत रचना अभिवयक्ति.........
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर.....
जवाब देंहटाएंगहन भाव...............
सस्नेह
अनु
नींद में ख्वाबों के क़त्ल की गवाही कौन दे ...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन !
कातिलों का शहर है नींद
जवाब देंहटाएंजाने कितने ही ख्वाबों का कत्ल होता है ... वाह
वाह ! सुंदर भावपूर्ण रचना !
जवाब देंहटाएंसंजीदा कर गयी ये रचना ....
जवाब देंहटाएं