बसन्ती गीत गुनगुना रही है ..
गेहूं की बाली ने कहा,
पीली सरसों से
देख आज पवन
मुस्करा रही है
लगता है ऋतु बसन्ती
आ रही है ...।
उधर कोयल की कूक से
मुस्कराती
टहनी आम की
झुककर धरती से बोली
देखो कोयल
बसन्ती गीत
गुनगुना रही है ...।
अम्बर ने कहा धरती से,
अब तो तू करना
खूब श्रृंगार
फूलों के खिलने
की ऋतु
बसन्ती जो आ रही है ...।
बेहतरीन
जवाब देंहटाएंसादर
ऋतुराज बसंत की अदभुत छटा ... सब खिल उठे हैं
जवाब देंहटाएंबसन्त का ख़ूबसूरत स्वागत...
जवाब देंहटाएं.वसंत पंचमी की शुभकामनाये
जवाब देंहटाएंबसंती शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंशनिवार के चर्चा मंच पर
हटाएंआपकी रचना का संकेत है |
आइये जरा ढूंढ़ निकालिए तो
यह संकेत ||
प्राकृतिक सौन्दर्य बिखेरती सुन्दर रचना ।
जवाब देंहटाएंबसंत पंचमी और माँ सरस्वती पूजा की हार्दिक शुभकामनाएँ । मेरे ब्लॉग "मेरी कविता" पर माँ शारदे को समर्पित 100वीं पोस्ट जरुर देखें ।
"हे ज्ञान की देवी शारदे"
बेहतरीन प्रस्तुती.....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंवसंत का आगमन नए संवाद का इशारा तो बना. सुंदर कविता. बधाई.
जवाब देंहटाएंलाज़वाब! बहुत सुंदर और भावपूर्ण प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंअब ये सब क़िताबी बातें लगती हैं। जीवन में कहीं कोई बसन्त बचा नहीं है हम सबके। हां,प्रकृति संदेश ज़रूर देती रहती है।
जवाब देंहटाएंbasanti bayar ke sath is basanti rachana ka jhoka sachmuch jhakjhor gaya Sada ji ....badhai ke sath abhar bhi.
जवाब देंहटाएंफूलों के खिलने
जवाब देंहटाएंकी ऋतु
बसन्ती जो आ रही है ...।very nice.
sundar kriti phoolon see...badhai.
जवाब देंहटाएंमनोरम रचना...
जवाब देंहटाएंसुन्दर!!!
आज 26/02/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर (सुनीता शानू जी की प्रस्तुति में) लिंक की गयी हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
basanti bayar hamesha chlti rahe yu hi..........abhar...
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता और बसंत की बधाईयां...
जवाब देंहटाएंसुंदर कविता. बधाई.
जवाब देंहटाएंप्यारीसी बात ...सहज, सुन्दर प्रभावपूर्ण !
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