आहत नहीं होते ...
एक मौसम होता है
जो बदलता है हर ऋतु में
कभी पतझड़ कभी बसंत
कभी शरद कभी ग्रीष्म
हर मौसम के अनुकूल
हम खुद को ढालने
का प्रयास करते हैं ...
शायद हमें पता होता है
अब इसके बदलने का वक्त
आ गया है और हम
हो जाते हैं
उसके ही अनुकूल
लेकिन
जब मानव स्वभाव
बदलता है तो
सच कहूं
बड़ी पीड़ा होती है
नेकी का बदला बदी
प्रेम के बदले नफरत
खुशी के बदले गम
आहत कर जाते हैं
यदि इनके
बदलने का समय
भी नियत होता
तो शायद
हम यूं
आहत नहीं होते ...
मानव स्वभाव मौसमी नहीं होता , वाकई मौसम का तो ज्ञान है , पर मानव ! उफ़ कब कौन सा रंग ले ले ... कोई नहीं जानता !
जवाब देंहटाएंसमाज जैसे जैसे आगे की ओर बढ़ राह है ... समय के साथ ही बहुत कुछ बदल रहा है ... कब क्या किस तरह बदलेगा यह किसी को पता नहीं होता है ... सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंशायद ये बात सबे अधिक घात लगाने वाली या दुख देने वाली है!
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना!
कुँवर जी,
कमाल के भाव लिए है रचना की पंक्तियाँ .......
जवाब देंहटाएंयकीनन यदि समयबद्ध हो सबकुछ तो आहत तो नहीं होते
जवाब देंहटाएंChange is the law of the nature but it must be in the right direction.
जवाब देंहटाएंबढ़िया कविता...
जवाब देंहटाएंमानव स्वभाव कब बदल जाए कोई नहीं कह सकता है ... उसका कोई स्थिर समय तो होता नहीं है ... सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंमानव स्वभाव को ही यदि समय के चक्र में बांधना अगर संभव होता .....सोचो फिर जीवन कैसा होता ????
जवाब देंहटाएंकोमल भावों की सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंवक्त अपनी ताकत दिखाते हुये कब सोचता है कि कोई आहत होगा। भावमय प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंnice post,
जवाब देंहटाएंhar pankti khil kar apna sandesh deti hui.