मंगलवार, 4 अक्तूबर 2011

बिखर जाता दर्द ...











दर्द को छूकर
वह सहलाती जब भी
कोरों से बहते आंसू
वह हथेली में
समेट लेती जब
बिखर जाता दर्द
उसके आंचल में
सिमटने के लिए
वह एक खोखली हंसी
ले आती लबों पर
कहती क्‍यूं
इतना स्‍नेह मुझसे
जो मेरा दामन
छोड़ा नहीं जाता
मेरे धैर्य की
कितनी परीक्षा
लेनी है तुम्‍हें ....
अचानक एक टीस सी उठती
लगता सब कुछ खत्‍म
फिर वह संयत कर खुद को
कह उठती
अच्‍छा चलो मैं अब
तुम्‍हारे संग चलूंगी
तुम्‍हारे साथ
जीवन के नये रंग
गीतों में उतारूंगी
कुछ तुम्‍हारी बातें होंगी
कुछ मेरे अनुभव
तुम्‍हें अपने अंतस में
छुपा लेने के ...!!!

18 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||

    बहुत बहुत बधाई ||

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  2. सार्थक सोच लिये बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..

    http://batenkuchhdilkee.blogspot.com

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  3. दर्द और आंसू से आगे निकल नए रंग गीतों में सजाने की भावना को सुन्दर अभिव्यक्ति मिली है!

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  4. सुन्दर कविता. भाव अच्छे हैं.. शब्द भी संतुलित और संयमित हैं...

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  5. कोमल मनोभावों को खूबसूरती से पिरोया है.
    फिर वह संयत कर खुद को
    कह उठती
    अच्‍छा चलो मैं अब
    तुम्‍हारे संग चलूंगी
    तुम्‍हारे साथ
    जीवन के नये रंग
    गीतों में उतारूंगी
    कुछ तुम्‍हारी बातें होंगी
    कुछ मेरे अनुभव
    तुम्‍हें अपने अंतस में
    छुपा लेने के ...!!!

    जवाब देंहटाएं
  6. अच्‍छा चलो मैं अब
    तुम्‍हारे संग चलूंगी
    तुम्‍हारे साथ
    जीवन के नये रंग
    गीतों में उतारूंगी
    bhut acha.

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  7. अचानक एक टीस सी उठती
    लगता सब कुछ खत्‍म
    फिर वह संयत कर खुद को
    कह उठती
    अच्‍छा चलो मैं अब
    तुम्‍हारे संग चलूंगी
    ...
    bahut dinon baad aapko padha raha hun ....kamaal hai...itna dard...bahut apna sa laga yahan aakar !!

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  8. वाह...
    सच है दर्द से कविता जन्म लेती है..
    बहुत खूब सदा जी...

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  9. बहुत सुंदर एवं सार्थक अभिव्यक्ति ...

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  10. बहुत ही कोमल भाव पूर्ण प्रस्तुति ..सादर !!!

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