शनिवार, 23 जुलाई 2011

वो नाजुक धागा ....












वक्‍त को उसने बांधने की कोशिश की
कैसे ठहरता वो चलायमान
वो चला उसके साथ कभी भागा भी
छूट गया यूं ही एक दिन
रिश्‍तों के संग रिश्‍तों का
वो नाजुक धागा भी
कितना फकीर है वो जिसके पास
दौलत के खजाने भरपूर हैं
पर वक्‍त नहीं उसके पास
सुकून से खाने का
मजबूर है घड़ी की सुइयों के संग
अलसाई आंखों से जागने को
गंवाया उसने हर क्षण
जाने कितने सुखद अहसासों को
हेरफेर में रहा हर पल उसका
कैसे-कैसे बीच कयासों के .....!!!

20 टिप्‍पणियां:

  1. कितना फकीर है वो जिसके पास
    दौलत के खजाने भरपूर हैं
    पर वक्‍त नहीं उसके पास
    सुकून से खाने का

    बहुत सही कहा आपने यह विरोधाभास आज की मूल प्रवृत्ति हो गई है...बहुत सुन्दर लिखा

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  2. उत्तम भावों को अभिव्यक्त करती सुंदर कविता।

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  3. वक्‍त को उसने बांधने की कोशिश की
    कैसे ठहरता वो चलायमान
    वो चला उसके साथ कभी भागा भी
    छूट गया यूं ही एक दिन
    .........हर शब्द बोलता हुआ मन को छूते भाव ...बहुत खूब |

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  4. ये वक्त ही न जाने कैसे-कैसे खेल दिखाता इतना उलझा देता है कि बाकी सब के चक्कर में बस वक्त ही नहीं बच पाता ......

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  5. बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !

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  6. दिल की गहराईयों को छूने वाली खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  7. वक्‍त को उसने बांधने की कोशिश की
    कैसे ठहरता वो चलायमान
    वो चला उसके साथ कभी भागा भी
    छूट गया यूं ही एक दिन

    खूबसूरत अभिव्यक्ति

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  8. so nice post
    मित्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं,आपकी कलम निरंतर सार्थक सृजन में लगी रहे .
    एस .एन. शुक्ल

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  9. कितना फकीर है वो जिसके पास
    दौलत के खजाने भरपूर हैं
    पर वक्‍त नहीं उसके पास
    सुकून से खाने का.....
    ..
    kitni sahajta se kitnee gahri baat kah gaye aap!
    waah !!

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  10. कितना फकीर है वो जिसके पास
    दौलत के खजाने भरपूर हैं
    पर वक्‍त नहीं उसके पास
    सुकून से खाने का

    कितना महत्वपूर्ण सच छिपा है इन पंक्तियों में ! सच में आज वही सबसे गरीब है जिसने सिर्फ धन-दौलत कमाने के फेर में जीवन की हर खुशी को हाथों से फिसल जाने दिया है ! खूबसूरत अहसासों से सजी बहुत ही खूबसूरत रचना ! बधाई स्वीकार करें !

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  11. वक्त पर किसका वश चला है.सुन्दर प्रस्तुति.

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