माता के जगराते में महारानी तारा देवी की कथा कहने व सुनने की परम्परा प्राचीन काल से चली आई है ।
बिना इस कथा के जागरण को सम्पूर्ण नहीं माना जाता है, यद्यपि पुराणों या ऐतिहासिक पुस्तकों में कोई उल्लेख नहीं है – तथापि माता के प्रत्येक जागरण में इसको सम्मिलित करने का परम्परागत विधान है ।
कथा इस प्रकार है –
राजा स्पर्श मां भगवती का पुजारी था, दिन रात महामाई की पूजा करता था । मां ने भी उसे राजपाट, धन-दौलत, ऐशो-आराम के सभी साधन दिये था, कमी थी तो सिर्फ यह कि उसके घर में कोई संतान न थी, यही गम उसे दिन-रात सताता, वो मां से यही प्रार्थना करता रहता था कि मां मुझे एक लाल बख्श दो, ताकि मैं भी संतान का सुख भोग सकूं, मेरे पीछे भी मेरा नाम लेने वाला हो, मेरा वंश भी चलता रहे, मां ने उसकी पुकार सुन ली, एक दिन मां ने आकर राजा को स्वप्न में दर्शन दिये और कहा है, हे राजन, मैं तेरी भक्ति से बहुत प्रसन्न हूं, और तुझे वरदान देती हूं कि तेरे घर में दो कन्याएं जन्म लेंगी।
कुछ समय के बाद राजा के घर में एक कन्या ने जन्म लिया, राजा ने अपने राज दरबारियों को बुलाया, पण्डितों व ज्योतिषों को बुलाया और बच्ची की जन्म कुण्डली तैयार करने का हुक्म दिया।
पण्डित तथा ज्योतिषियों ने उस बच्ची की जन्म कुण्डली तैयार की और कहा हे राजन, यह कन्या तो साक्षात देवी है। यह कन्या जहां भी कदम रखेगी, वहां खुशियां ही खुशियां होंगी। यह कन्या भी भगवती की पुजारिन होगी, उस कन्या का नाम तारा रखा गया, थोड़े समय बाद राजा के घर वरदान के अनुसार एक और कन्या ने जन्म लिया। मंगलवार का दिन था, पण्डितों और ज्योतिषियों ने जब जन्म कुण्डली तैयार की तो उदास हो गये, राजा ने उदासी का करण पूछा तो वे कहने लगे, महाराज यह कन्या आपके लिये शुभ नहीं है, राजा ने उदास होकर ज्योतिषियों से पूछा कि मैने ऐसे कौन से बुरे कर्म किये हैं जो कि इस कन्या ने मेरे घर में जन्म लिया है, उस समय ज्योतिषियों ने अपनी ज्योतिष लगाकर बताया, कहने लगे कि ये दोनो कन्याएं जिन्होंने आपके घर में जन्म लिया है, पिछले जन्म में राजा इन्द्र की अप्सराएं थीं, इन्होंने सोचा कि हम भी मृत्युलोक में भ्रमण करें तथा देखें कि मृत्युलोक पर लोग किस तरह रहते हैं, दोनो ने मृत्युलोक पर आ एकादशी का व्रत रखा, बड़ी बहन का नाम तारा था, छोटी बहन का नाम रूक्मन, बड़ी बहन तारा ने अपनी छोटी बहन से कहा कि रूक्मन आज एकादशी का व्रत है, हम लोगों ने आज भोजन नहीं खाना, तू बाजार जाकर फल ले आ, रूक्मन बाजार फल लेने के लिये गई, वहां उसने मछली के पकोड़े बनते देखे। उसने अपने पैसों के तो पकोड़े खा लिये तथा तारा के लिये फल लेकर वापस आ गई, फल उसने तारा को दे दिये, तारा ने पूछा कि तू अपने लिये फल क्यों नहीं लाई, तो रूक्मन ने बताया कि उसने मछली के पकोड़े खा लिये हैं।
उसी वक्त तारा ने शाप दिया, जा नीच, तूने एकादशी के दिन मांस खाया है, नीचों का कर्म किया है, जा मैं तुझे शाप देती हूं, तू नीचों की जून पाये। छिपकली बनकर सारी उम्र मांस ही ‘कीड़े-मकोड़े’ खाती रहे, उसी शहर में एक ऋषि गुरू गोरख अपने शिष्यों के साथ रहते थे, उनके शिष्यों में एक चेला तेज स्वभाव का तथा घमण्डी था, एक दिन वो घमण्डी शिष्य पानी का कमण्डल भरकर खुले स्थान में, एकान्त में, जाकर तपस्या पर बैठ गया, वो अपनी तपस्या में लीन था, उसी समय उधर से एक प्यासी कपिला गाय आ गई, उस ऋषि के पास पड़े कमण्डल में पानी पीने के लिए उसने मुंह डाला और सारा पानी पी गई, जब कपिता गाय ने मुंह बाहर निकाला तो खाली कमण्डल की आवाज सुनकर उस ऋषि की समाधि टूटी। उसने देखा कि गाय ने सारा पानी पी लिया था, ऋषि ने गुस्से में आ उस कपिला गाय को बहुत बुरी तरह चिमटे से मारा, वह गाय लहुलुहान हो गई, यह खबर गुरू गोरख को मिली, उन्होंने जब कपिला गाय की हालत देखी तो उस ऋषि को बहुत बुरा-भला कहा और उसी वक्त आश्रम से निकाल दिया, गुरू गोरख ने गाय माता पर किये गये पाप से छुटकारा पाने के लिए कुछ समय बाद एक यज्ञ रचाया, इस यज्ञ का पता उस शिष्य को भी चल गया, जिसने कपिला गाय को मारा था, उसने सोचा कि वह अपने अपमान का बदला जरूर लेगा, यज्ञ शुरू हो गया, उस चेले ने एक पक्षी का रूप धारण किया और चोंच में सर्प लेकर भण्डारे में फेंक दिया, जिसका किसी को पता न चला, एक छिपकली ‘जो पिछले जन्म में तारा देवी की छोटी बहन थी, तथा बहन के शाप को स्वीकार कर छिपकली बनी थी’ सर्प का भण्डारे में गिरना देख रही थी, उसे त्याग व परोपकार की शिक्षा अब तक याद थी, वह भण्डारा होने तक घर की दीवार पर चिपकी समय की प्रतीक्षा करती रही, कई लोगो के प्राण बचाने हेतु उसने अपने प्राण न्योछावर कर लेने का मन ही मन निश्चय किया, अब खीर भण्डारे में दी जाने वाली थी, बांटने वालों की आंखों के सामने वह छिपकली दीवार से कूदकर कढ़ाई में जा गिरी, नादान लोग छिपकली को बुरा-भला कहते हुये खीर की कढ़ाई को खाली करने लगे, उन्होंने उसमें मरे हुये सांप को देखा, तब सबको मालूम हुआ कि छिपकली ने अपने प्राण देकर उन सबके प्राणों की रखा की है, उपस्थित सभी सज्जनों और देवताओं ने उस छिपकली के लिए प्रार्थना की कि उसे सब योनियों में उत्तम मनुष्य जन्म प्राप्त हो तथा अन्त में वह मोक्ष को प्राप्त करे, तीसरे जन्म में वह छिपकली राजा स्पर्श के घर कन्या जन्मी, दूसरी बहन ‘तारा देवी’ ने फिर मनुष्य जन्म लेकर तारामती नाम से अयोध्या के प्रतापी राजा हरिश्चन्द्र के साथ विवाह किया।
राजा स्पर्श ने ज्योतिषियों से कन्या की कुण्डली बनवाई ज्योतिषियों ने राजा को बताया कि कन्या आपके लिये हानिकारक सिद्ध होगी, शकुन ठीक नहीं है, अत: आप इसे मरवा दीजिए, राजा बोले लड़की को मारने का पाप बहुत बड़ा है, मैं उस पाप का भार नहीं बन सकता।
तब ज्योतिषियों ने विचार करके राय दी, हे राजन । आप एक लकड़ी के सन्दूक में ऊपर से सोना-चांदी आदि जड़वा दें, फिर उस सन्दूक के भीतर लड़की को बन्द करके नदी में प्रवाहित कर दीजिए, सोने चांदी से जड़ा हुआ सन्दूक अवश्य ही कोई लालच से निकाल लेगा, और आपकी हत्या कन्या को भी पाल लेगा, आपको किसी प्रकार का पाप न लगेगा, ऐसा ही किया गया और नदी में बहता हुआ सन्दूक काशी के समीप एक भंगी को दिखाई दिया वह सन्दूक को नदी से बाहर निकाल लाया।
उसने जब सन्दूक खोला तो सोने-चांदी के अतिरिक्त अत्यन्त रूपवान कन्या दिखाई दी, उस भंगी के कोई संतान नहीं थी, उसने अपनी पत्नी को वह कन्या लाकर दी तो पत्नी की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा, उसने अपनी संतान के समान ही बच्ची को छाती से लगा लिया, भगवती की कृपा से उसके स्तनो में दूध उतर आया, पति-पत्नी दोनो ने प्रेम से कन्या का नाम ‘रूक्को’ रख दिया, रूक्को बड़ी हुई उसका विवाह हुआ। रूक्को की सास महाराजा हरिश्चन्द्र के घर सफाई आदि का काम करने जाया करती थी, एक दिन वह बीमार पड़ गई, रूक्को महाराजा हरिश्चन्द्र के घर काम करने के लिये पहुंच गई, महाराज की पत्नी तारामती ने जब रूक्को को देखा तो वह अपने पूर्व जन्म के पुण्य से उसे पहचान गई, तारामती ने रूक्को से कहा – हे बहन, तुम मेरे यहां निकट आकर बैठो, महारानी की बात सुनकर रूक्को बोली- रानी जी, मैं नीच जाति की भंगिन हूं, भला मैं आपके पास कैसे बैठ सकती हूं ।
तब तारामती ने कहा – बहन, पूर्व जन्म में तुम मेरी सगी बहन थी, एकादशी का व्रत खंडित करने के कारण तुम्हें छिपकली की योनि में जाना पड़ा जो होना था सो हो चुका, अब तुम अपने इस जन्म को सुधारने का उपाय करो तथा भगवती वैष्णों माता की सेवा करके अपना जन्म सफल बनाओ, यह सुनकर रूक्को को बड़ी प्रसन्नता हुई और उसने उपाय पूछा, रानी ने बताया कि वैष्णों माता सब मनोरथों को पूरा करने वाली हैं, जो लोग श्रद्धापूर्वक माता का पूजन व जागरण करते हैं, उनकी सब मनोकाना पूर्ण होती है ।
रूक्को ने प्रसन्न होकर माता की मनौती करते हुये कहा – हे माता, यदि आपकी कृपा से मुझे एक पुत्र प्राप्त हो गया तो मैं भी आपका पूजन व जागरण करवाऊंगी । माता ने प्रार्थना को स्वीकार कर लिया, फलस्वरूप दसवें महीने उसके गर्भ से एक अत्यन्त सुन्दर बालक ने जन्म लिया, परन्तु दुर्भाग्यवश रूक्को को माता का पूजन-जागरण कराने का ध्यान न रहा। जब वह बालक पांच वर्ष का हुआ तो एक दिन उसे माता (चेचक) निकल आई । रूक्को दु:खी होकर अपने पूर्वजन्म की बहन तारामती के पास आई और बच्चे की बीमारी का सब वृतान्त कह सुनाया। तब तारामती ने कहा – तू जरा ध्यान करके देख कि तुझसे माता के पूजन में कोई भूल तो नहीं हुई । इस पर रूक्को को छह वर्ष पहले की बात याद आ गई। उसने अपराध स्वीकार कर लिया, उसने फिर मन में निश्चय किया कि बच्चे को आराम आने पर जागरण अवश्य करवायेगी ।
भगवती की कृपा से बच्चा दूसरे दिन ही ठीक हो गया। तब रूक्को ने देवी के मन्दिर में ही जाकर पंडित से कहा कि मुझे अपने घर माता का जागरण करना है, अत: आप मंगलवार को मेरे घर पधार कर कृतार्थ करें।
पंडित जी बोले – अरी रूक्को, तू यहीं पांच रूपये दे जा हम तेरे नाम से मन्दिर में ही जागरण करवा देंगे तू नीच जाति की स्त्री है, इसलिए हम तेरे घर में जाकर देवी का जागरण नहीं कर सकते। रूक्को ने कहा – हे पंडित जी, माता के दरबार में तो ऊंच- नीच का कोई विचार नहीं होता, वे तो सब भक्तों पर समान रूप से कृपा करती हैं। अत: आपको कोई एतराज नहीं होना चाहिए। इस पर पंडित ने आपस में विचार करके कहा कि यदि महारानी तुम्हारे जागरण में पधारें तब तो हम भी स्वीकार कर लेंगे।
यह सुनकर रूक्को महारानी के पास गई और सब वृतान्त कर सुनाया, तारामती ने जागरण में सम्मिलित होना सहर्ष स्वीकार कर लिया, जिस समय रूक्को पंडितो से यह कहने के लिये गई महारानी जी जागरण में आवेंगी, उस समय सेन नाई वहां था, उसने सब सुन लिया और महाराजा हरिश्चन्द्र को जाकर सूचना दी ।
राजा को सेन नाई की बात पर विश्वास नहीं हुआ, महारानी भंगियों के घर जागरण में नहीं जा सकती, फिर भी परीक्षा लेने के लिये उसने रात को अपनी उंगली पर थोड़ा सा चीरा लगा लिया जिससे नींद न आए ।
रानी तारामती ने जब देखा कि जागरण का समय हो रहा है, परन्तु महाराज को नींद नहीं आ रही तो उसने माता वैष्णों देवी से मन ही मन प्रार्थना की कि हे माता, आप किसी उपाय से राजा को सुला दें ताकि मैं जागरण में सम्मिलित हो सकूं ।
राजा को नींद आ गई, तारामती रोशनदान से रस्सा बांधकर महल से उतरीं और रूक्को के घर जा पहुंची। उस समय जल्दी के कारण रानी के हांथ से रेशमी रूमाल तथा पांव का एक कंगन रास्ते में ही गिर पड़ा, उधर थोड़ी देर बाद राजा हरिश्चन्द्र की नींद खुल गई। वह भी रानी का पता लगाने निकल पड़ा। उसने मार्ग में कंगन व रूमाल देखा, राजा ने दोनो चीजें रास्ते से उठाकर अपने पास रख लीं और जहां जागरण हो रहा था, वहां जा पहुंचा वह एक कोने में चुपचाप बैठकर दृश्य देखने लगा।
जब जागरण समाप्त हुआ तो सबने माता की अरदास की, उसके बाद प्रसाद बांटा गया, रानी तारामती को जब प्रसाद मिला तो उसने झोली में रख लिया।
यह देख लोगों ने पूछा आपने प्रसाद क्यों नहीं खाया ?
यदि आप न खाएंगी तो कोई भी प्रसाद नहीं खाएगा, रानी बोली- तुमने प्रसाद दिया, वह मैने महाराज के लिए रख लिया, अब मुझे मेरा प्रसाद दे दें, अबकी बार प्रसाद ले तारा ने खा लिया, इसके बाद सब भक्तों ने मां का प्रसाद खाया, इस प्रकार जागरण समाप्त करके, प्रसाद खाने के पश्चात् रानी तारामती महल की तरफ चलीं।
तब राजा ने आगे बढ़कर रास्ता रोक लिया, और कहा- तूने नीचों के घर का प्रसाद खा अपना धर्म भ्रष्ट कर लिया, अब मैं तुझे अपने घर कैसे रखूं ? तूने तो कुल की मर्यादा व प्रतिष्ठा का भी ध्यान नहीं रखा, जो प्रसाद तू अपनी झोली में मेरे लिये लाई है, उसे खिला मुझे भी तू अपवित्र करना चाहती है।
ऐसा कहते हुऐ जब राजा ने झोली की ओर देखा तो भगवती की कृपा से प्रसाद के स्थान पर उसमें चम्पा, गुलाब, गेंदे के फूल, कच्चे चावल और सुपारियां दिखाई दीं यह चमत्कार देख राजा आश्चर्यचकित रह गया, राजा हरिश्चन्द्र रानी तारा को साथ ले महल लौट आए, वहीं रानी ने ज्वाला मैया की शक्ति से बिना माचिस या चकमक पत्थर की सहायता के राजा को अग्नि प्रज्वलित करके दिखाई, जिसे देखकर राजा का आश्चर्य और बढ़ गया।
रानी बोली – प्रत्यक्ष दर्शन पाने के लिऐ बहुत बड़ा त्याग होना चाहिए, यदि आप अपने पुत्र रोहिताश्व की बलि दे सकें तो आपको दुर्गा देवी के प्रत्यक्ष दर्शन हो जाएंगे। राजा के मन में तो देवी के दर्शन की लगन हो गई थी, राजा ने पुत्र मोह त्यागकर रोहिताश्व का सिर देवी को अर्पण कर दिया, ऐसी सच्ची श्रद्धा एवं विश्वास देख दुर्गा माता, सिंह पर सवार हो उसी समय प्रकट को गईं और राजा हरिश्चन्द्र दर्शन करके कृतार्थ हो गए, मरा हुआ पुत्र भी जीवित हो गया।
चमत्कार देख राजा हरिश्चन्द्र गदगद हो गये, उन्होंने विधिपूर्वक माता का पूजन करके अपराधों की क्षमा मांगी।
इसके बाद सुखी रहने का आशीर्वाद दे माता अन्तर्ध्यान हो गईं। राजा ने तारा रानी की भक्ति की प्रशंसा करते हुऐ कहा हे – तारा तुम्हारे आचरण से अति प्रसन्न हूं। मेरे धन्य भाग, जो तुम मुझे पत्नी रूप में प्राप्त हुई।
आयुपर्यन्त सुख भोगने के पश्चात् राजा हरिश्चन्द्र, रानी तारा एवं रूक्मन भंगिन तीनों ही मनुष्य योनि से छूटकर देवलोक को प्राप्त हुये।
माता के जागरण में तारा रानी की कथा को जो मनुष्य भक्तिपूर्वक पढ़ता या सुनता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, सुख-समृद्धि बढ़ती है, शत्रुओं का नाश होता है।
इस कथा के बिना माता का जागरण पूरा नहीं माना जाता ।
।। बोलो सांचे दरबार की जय ।।
बचपन में माता के जागरण के आखिर में सुनाये जाने वाली इस कथा का इंतज़ार किया करते थे.आपने बचपन की यादें फिर ताज़ा कर दीं. कथा की बहुत सुन्दर प्रस्तुति...जय माता दी...
जवाब देंहटाएंMata Ka Jagran sach me is katha ke bina Poora nahi hota
जवाब देंहटाएंHa
हटाएंnice
हटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति। आज कल के जागरण मे कई जगह देखा कि तारा रानी की जगह अब झाँकियाँ सी निकालने लगे हैं बस पैसे कमाने की खातिर। मगर इस कथा के बिना जागरण अधूरा सा ही लगता है। धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंryt ji
हटाएंआपकी इस पोस्ट से हमारी नवरात्री भी सफल हुई ..... जय मादा दी
जवाब देंहटाएंबहुत शुभकामनाएँ
यहाँ भी पधारे
हे माँ दुर्गे सकल सुखदाता
आज पढ़ा इस कहानी को। बहुत ज्ञानवर्धक लगी । मेरे लिए सर्वथा नयी थी । इस प्रस्तुति के लिए आपका आभार सदा जी।
जवाब देंहटाएंAmma kai baar angeethi k charo or hum bachcho ko baitha kar ye aur aisi kai kahaniyaan sunaya karti thi..apne kai yaadein tazza kar di..thnk u :)
जवाब देंहटाएंइस कथा के प्रसंगों को प्रतीक रूप में लिया जाए,तो ये सहज,सात्विक जीवन के संदेश हैं(टिप्पणीःलाडली ब्लॉग का टिप्पणी वाला लिंक नहीं खुल रहा है। कृपया देखें)।
जवाब देंहटाएंजय मादा दी
जवाब देंहटाएंबहुत शुभकामनाएँ
जय माता दी .....बहुत शुभकामनाएं नवरात्री पर ....
जवाब देंहटाएंJai mata di......
जवाब देंहटाएंme mat ka jagrata karta hu 8937981189 aur ye katha bilkul satya nahi hai kripya call kre aur meri sanka ka niwaran kre
जवाब देंहटाएंme mat ka jagrata karta hu 8937981189 aur ye katha bilkul satya nahi hai kripya call kre aur meri sanka ka niwaran kre
जवाब देंहटाएंmata k jagrate ki ye katha meri jankari k mutabik satya hai, yadi aapne koi or katha padhi ya jankari rakhte hain to ho skata wo b sahi ho ... meri mail id sssinghals@gmail.com pe mail kar aap apni shanka ka nivaran kar sakte hain ....
हटाएंAaj jag rahi thi maan nahi lag raha too katha padhi achaa lagaa bhot maan shaant huaa Ritu sharma Balrampur jai mata di 🙏🙏🙏🙏🙏🙏 time 4:28am
हटाएंJai Mata di
जवाब देंहटाएंजय माता दी
जवाब देंहटाएंजय माता दी
जवाब देंहटाएंJai Mata ki
जवाब देंहटाएंJai Mata ki
जवाब देंहटाएंकॉल-करें+91-9928418290 .One Advice & forget your all problems. गढाधन निकलवाऐ जमीन मे छुपा धन {Get your lost love back}{Husband wife dispute}{Inter-caste love marriage}{business problems}{family problem}{Lottery expert} WhatsApp +91-9928418290 famous in all world 🇮🇳 INDIA/ 🇬🇧 UK/ 🇺🇸 USA/ 🇨🇦CANADA/CALIFORNIA/ 🇦🇺 AUSTRALIA/ DUBAI/ 🇮🇹 ITALY/ 🇲🇺 MAURITIUS/ 🇸🇬 SINGAPORE/ 🇲🇾 MALAYSIA ETC. contact & whatsaap no.+91-9928418290 World famous astrologer Swami ji ji Love marriage #black magic world best astrologer all problem sloution pandit ji ## get your love back just call Now +91-9928418290 one call change your life.
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Mane kanji karta nahi suni aja sun
जवाब देंहटाएंKar man main shanti ayii. Jai Mata di
जय माँ तारा
जवाब देंहटाएंMne yeh khani pheli baar padhi h bhot acchi khanai h padh krrr mja aa gya 😊😊😊
जवाब देंहटाएंयार,कुछ भी लिख देते हो कभी विश्वास से जागरण देखना,सत्य समझ आयगा।lion of mother
जवाब देंहटाएंRight mene bhi karaya h mata ka jagran
जवाब देंहटाएंPls provide ral mill bata batiye kahe ka bhog lagaye
जवाब देंहटाएंJai mata ki katha padkr bahut achha lga
जवाब देंहटाएंJai mata di ati Sundar 🙏🙏🏼🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🏼🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
जवाब देंहटाएंहमारे किसी भी धर्म ग्रंथ में ये कथा कहीं नही पाई जाती ।ये एक काल्पनिक कथा जागरण वाली की बनाई हुई है जिसका कोई प्रमाण शास्त्रों में नही मिलता न ही देवी भागवत में कोई प्रसंग आता है । ये श्रद्धालुओं के टाइम पास के लिए बनाई गई है क्योंकि जागरण वाले भी सुबह को थक जाते है तो लोगो को कैसे रोकें इसलिए ये प्रचारित किया गया कि इसके बिना जागरण का फल नही मिलेगा। भगवती जागरण का ये स्वरूप प्राचीन काल मे था ही नही ।
जवाब देंहटाएंजय माता जी की
जवाब देंहटाएंMata tara rani sadev sabka bhandar bharti the..jai maa tara rani..
जवाब देंहटाएंMa ki kirpa sab pe bani rahe.sabki manokamna pooran ho.
जवाब देंहटाएंJai mata di. kripa karo ma tere bache kast me hai
जवाब देंहटाएंअति उत्तम कथा सुनाई आपको कोटि कोटि प्रणाम।
जवाब देंहटाएंमाता तारा रानी की कथा ने मंत्रमुग्ध कर दिया,, जय माता दी
जवाब देंहटाएंYe bahut sunder katha hai ise padhne ke bad man ko bahut sukun mila jai mata di
जवाब देंहटाएंPehle kahani kabhi samajh nahi aati thi, ab samajh aai hai
जवाब देंहटाएंJay mata di
जवाब देंहटाएंSparsh raja kaha ke raja the or tara rani maa ka naam kya tha
जवाब देंहटाएंजैसा कि इस कहानी में गुरु गोरखनाथ कपिला गाय का विवरण किया गया है कुछ लोग यहां दुर्वासा ऋषि और पांडवों का विवरण करते हैं तो इसमें कौन सा सही है कुछ लोग तारा को गिद्ध का जन्म देकर शेर छिपकली का जन्म देते हैं तू ऐसे में सही कौन सा है कृपया हमें बताएं
जवाब देंहटाएं