मंगलवार, 1 जनवरी 2013

जाने कितनी बार !!!

जब से हालात बदले हैं
हर पिता का मन
मां की सोच का समर्थन
करने लगा है
...
कभी हँस कर टाल दिया करता था
जो मन माँ की सोच को
तुम तो नाहक ही चिं‍ता करती हो
वह अब बिटिया के जरा सी देरी पर
अन्‍दर बाहर होता है ....
शाम ढले जाने कितनी बार !!!

9 टिप्‍पणियां:

  1. कितना कुछ पल में बदल जाता है .

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  2. इस सोच में बदलाव लाने की ज़रूरत है।

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  3. घड़ी की टिक टिक हथौड़े सी चलती है ...

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  4. सचमुच एक भय का मातमी वातावरण छा गया है..पर यह ज्यादा दिन नहीं रहेगा..यही आशा है

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  5. एक दिल देहला देनेवाला सच ....!

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  6. सच कभी हँस कर टाल दिया करता था
    जो मन माँ की सोच को
    तुम तो नाहक ही चिं‍ता करती हो
    वह अब बिटिया के जरा सी देरी पर
    अन्‍दर बाहर होता है ....
    शाम ढले जाने कितनी बार !!!

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  7. एक सार्थक रचना । बधाई । सस्नेह

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