दर्द आज़ अपनी ही पीड़ा को
पीना चाहता है आँसुओं की शक्ल में
सिसकियों का रूदन
कब चिन्हित हुआ रूख़सार पर
वो हतप्रभ है औ भयाक्रान्त भी
इस आक्रोश पर
सर्जक का आवेग बहा ले जाता है
अपनी ही मैं में
बिना किसी की कोई बात सुने
....
ज़बां का खामोश होना
सारे प्रयासों को विफ़ल कर हर बार
दाग देता अपने ही जि़स्म में
अनेको शब्द बाण
आहत हो मन खुद की शैय्या तैयार कर
विचलित सा अंत की प्रतीक्षा में
अनंत पलों का संहार कर
विषादमय हो
बस प्रतीक्षा करता है अंत की
अनंत पलों तक
पीना चाहता है आँसुओं की शक्ल में
सिसकियों का रूदन
कब चिन्हित हुआ रूख़सार पर
वो हतप्रभ है औ भयाक्रान्त भी
इस आक्रोश पर
सर्जक का आवेग बहा ले जाता है
अपनी ही मैं में
बिना किसी की कोई बात सुने
....
ज़बां का खामोश होना
सारे प्रयासों को विफ़ल कर हर बार
दाग देता अपने ही जि़स्म में
अनेको शब्द बाण
आहत हो मन खुद की शैय्या तैयार कर
विचलित सा अंत की प्रतीक्षा में
अनंत पलों का संहार कर
विषादमय हो
बस प्रतीक्षा करता है अंत की
अनंत पलों तक
bahut sundar srijan, badhai.
जवाब देंहटाएंकृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारने का कष्ट करें , आभारी होऊंगा.
बहुत सुन्दर...
जवाब देंहटाएंसस्नेह
अनु
दर्द को चिन्हित करती सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंमार्मिक पंक्तियाँ सदा जी-
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें
मार्मिक भाव की रचना..
जवाब देंहटाएंआहत मन की सशक्त अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंज़बां का खामोश होना
जवाब देंहटाएंसारे प्रयासों को विफ़ल कर हर बार
दाग देता अपने ही जि़स्म में
अनेको शब्द बाण
आहत हो मन खुद की शैय्या तैयार कर
विचलित सा अंत की प्रतीक्षा में
अनंत पलों का संहार कर
विषादमय हो
बस प्रतीक्षा करता है अंत की
अनंत पलों तक...बहुत ही सूक्ष्म अभिव्यक्ति
आपकी सृजन-ऊर्जा का ह्रास देख रहा हूं। आशावादिता सदैव बनी रहनी चाहिए।
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता
जवाब देंहटाएंज़बां का खामोश होना
जवाब देंहटाएंसारे प्रयासों को विफ़ल कर हर बार
दाग देता अपने ही जि़स्म में
bahut acchi panktiya .....