मुहब्बत की गलियों में तो
सड़के बेवफाई की ज्यादा हैं ।
समझे कैसे वक्त की चाल,
बशर तो बस एक प्यादा है ।
लगाये फिरते इक मुखौटा,
गहरी चोट का जो इरादा है ।
तन जो मन से जुदा हुआ,
फिर इक लिबास सादा है ।
तन जो मन से जुदा हुआ,फिर इक लिबास सादा है.बहुत सुन्दर रचना
बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है। साहित्यकार-बाबा नागार्जुन, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें
भावनाओं की बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ....आभार..
मुहब्बत की गलियों में तोसड़के बेवफाई की ज्यादा हैं ।समझे कैसे वक्त की चाल,बशर तो बस एक प्यादा है ।लगाये फिरते इक मुखौटा,...Beautiful expression !.
bahut umda..
तन जो मन से जुदा हुआ,
जवाब देंहटाएंफिर इक लिबास सादा है.
बहुत सुन्दर रचना
बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
जवाब देंहटाएंसाहित्यकार-बाबा नागार्जुन, राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें
भावनाओं की बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ....आभार..
जवाब देंहटाएंमुहब्बत की गलियों में तो
जवाब देंहटाएंसड़के बेवफाई की ज्यादा हैं ।
समझे कैसे वक्त की चाल,
बशर तो बस एक प्यादा है ।
लगाये फिरते इक मुखौटा,...
Beautiful expression !
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