ढूंढा करती हैं तुझको अब भी जाती हुई
सूरज की किरणें नदिया के किनारों पर ।
पत्थर वो नदी के सूने हैं जिन पर बैठ,
रखते थे निगाह आती जाती धारों पर ।
नहीं मिलते बचपन के साथी कोई यहां,
रहते थे यहां जो बारिश की बौछारों पर ।
बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति.... How n where r u?
Waah! behad khubsurat rachana....Shubhkaamnae!
सुंदर प्रस्तुति!राष्ट्रीय व्यवहार में हिन्दी को काम में लाना देश की शीघ्र उन्नति के लिए आवश्यक है।
m apne blog ko chittha jagat p link dilvala chahti hu jis s log mujhe jane kya aap meri sahayta karege plzmere blog ka link hwww.deepti09sharma.blogspot.com
सुंदर अभिव्यक्ति.
धाराएं तो बह जाने के लिए ही होती हैं । सब कुछ बह जाता है.... बचपन, जवानी ...और बुढ़ापा भी..तभी कहते हैं चरैवेती ...चरैवेती.. है न ?
bahut sunder.
सुंदर अभिव्यक्ति.नहीं मिलते बचपन के साथी कोई यहां,रहते थे यहां जो बारिश की बौछारों पर ।
acchi hai..
बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएंHow n where r u?
Waah! behad khubsurat rachana....Shubhkaamnae!
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंराष्ट्रीय व्यवहार में हिन्दी को काम में लाना देश की शीघ्र उन्नति के लिए आवश्यक है।
m apne blog ko chittha jagat p link dilvala chahti hu jis s log mujhe jane kya aap meri sahayta karege plz
जवाब देंहटाएंmere blog ka link h
www.deepti09sharma.blogspot.com
सुंदर अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंधाराएं तो बह जाने के लिए ही होती हैं ।
जवाब देंहटाएंसब कुछ बह जाता है.... बचपन, जवानी ...और बुढ़ापा भी..
तभी कहते हैं चरैवेती ...चरैवेती.. है न ?
bahut sunder.
जवाब देंहटाएंसुंदर अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंनहीं मिलते बचपन के साथी कोई यहां,
रहते थे यहां जो बारिश की बौछारों पर ।
acchi hai..
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