सोमवार, 2 जनवरी 2012

दर्द के एहसास ...














मौन की तड़प
बस इक संवाद
इस तड़प की
अवधि में
कितने पलछिन
गौण हो जाते हैं
जिनमें रिसते हुए
दर्द के एहसास
अनाम रह जाते है ...!!!

19 टिप्‍पणियां:

  1. दर्द के एहसास
    अनाम रह जाते है ...!!!

    maun...ek alag duniya hai iski bhi...

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  3. सच है मौन का दर्द कौन समझ पाता है..बहुत मर्मस्पर्शी प्रस्तुति..

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति ब्यक्ति जीवन क़े करीब
    नव वर्ष पर सार्थक रचना
    आप को भी सपरिवार नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें !

    शुभकामनओं के साथ
    संजय भास्कर

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  5. जिनमें रिसते हुए
    दर्द के एहसास
    अनाम रह जाते है ...!!!

    Vah sada ji kya khoob likha hai ... badhai.

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  6. बहुत खूब लिखा है आपने वाह !!!

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  7. बेहद भावुक और मन को छूती रचना.. नव वर्ष की शुभकामनायें.

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  8. वाह...
    आह! कहूँ तो बेहतर होगा..
    बहुत खूब ..

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