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देर आये दुरूस्त आये कहना सही न होगा, हमारी चेतना जागृत हुई लेकिन जब इनकी संख्या बची मात्र 1411 जंगल का राजा बाघ इसकी राजसी जीवन शैली के साथ इसकी आक्रामकता जिसको देख सभी भयभीत होते रहे हैं, और इससे बचकर निकल जाने में ही अपनी भलाई समझते थे, परन्तु आज इनकी कम होती संख्या को देख सजग नागरिक चिंतित हैं, कि आने वाले समय में क्या हम इसे तस्वीरों में ही देख पाएंगे, या यह वास्तव में अभ्यारण्य की शान बढ़ाते हुये आगे भी जीवित रहेंगे, अब हम पर इनकी सुरक्षा का दायित्व है, इनका शिकार कर असमय इन्हें काल के गाल में भेजना शोभा नहीं देता, कभी इसकी धारीदारी खाल मन मोह लेती या इन्हें अपने निशाने पर लेने का शौक इनकी मौत का कारण बन जाता है, राष्ट्रीय पशु बाघ की सुरक्षा के लिये कदम उठाना नितांत आवश्यक हो गया है, मां दुर्गा की सिंह सवारी के रूप में ख्यातिप्राप्त यह चित्रों और मूर्तियों में गढ़ा जाने वाला क्या इसी रूप में स्मृतिवान रहेगा, या फिर अभ्यारण्य में अपनी खूंखार गर्जना से गुंजायमान रख पाएगा, यह सोचनीय विषय है, यह राह है तो दुर्गम परन्तु कुछ लोग साथ मिलकर एक स्वर में 1411 को सुरक्षित रखने का बीड़ा उठाएंगे तो मुश्किलें कुछ हद तक कम हो जाएंगी, इसी विश्वास के साथ की आप भी आगे आएंगे अपने विचारों के साथ ।